तुम बहुत मजबूर हो!
दरख़्त के तने का खुरदरापन
दर्शाता है कशमकश की सीलन
शाख़ पर झूलती ज़िम्मेदारी
समय से पहले पत्तों का पीलापन
बात यहीं से शुरु करनी चाहिए।
हम भूलने लगे हैं दरख़्त की छाँव
उस पर बने पक्षियों के आशियाने
महकते खिलखिलाते सुर्ख़ फूल
टहनियों से नाज़ुक संबंधों को
अब विचारों के फटे कंबल से
थकते अहसास झाँकने लगे हैं।
प्रेम की पगडंडियों से परे हम
पहुँच गए हैं पथरीले रास्तों पर
झंझावातों के काँटे कुरेदते-कुरेदते
उलझनों के घने कोहरे में विलीन
चलने लगे हैं नींद के पैरों से
समझौते की सड़क के किनारे-किनारे।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 18-12-2020) को "बेटियाँ -पवन-ऋचाएँ हैं" (चर्चा अंक- 3919) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
सादर आभार आदरणीय मीना दी चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
"झंझावातों के काँटे कुरेदते-कुरेदते
जवाब देंहटाएंउलझनों के घने कोहरे में विलीन
चलने लगे हैं नींद के पैरों से"
--
बहुत संवेदनशील रचना।
बहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंहम भूलने लगे हैं दरख़्त की छाँव
जवाब देंहटाएंउस पर बने पक्षियों के आशियाने
महकते खिलखिलाते सुर्ख़ फूल
टहनियों से नाज़ुक संबंधों को
अब विचारों के फटे कंबल से
थकते अहसास झाँकने लगे हैं।..भावपूर्ण सार लिए सुंदर रचना..।
दिल से आभार प्रिय दी।
हटाएंसादर
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंटहनियों से नाज़ुक संबंध। वाह! सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अनुज।
हटाएंभावपूर्ण रचना !
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय दी।
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सखी।
हटाएंप्रेम की पगडंडियों से परे हम
जवाब देंहटाएंपहुँच गए हैं पथरीले रास्तों पर
झंझावातों के काँटे कुरेदते-कुरेदते
उलझनों के घने कोहरे में विलीन
चलने लगे हैं नींद के पैरों से
समझौते की सड़क के किनारे-किनारे
सही कहा अब उम्र के इस दौर में अहसासात बदल रहे है....बहुत ही सुन्दर गहन भावपूर्ण सृजन
वाह!!!
दिल से आभार आदरणीय सुधा दी।
हटाएंसादर
सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
हटाएंगहरी संवेदनाओं को समेटे मन की अव्यक्त पीड़ा जैसे लेखनी से व्यक्त होना चाहती हो, एहसासों से लबरेज अप्रतिम लेखन।
जवाब देंहटाएंभावों की गहनता लिए सुंदर सृजन।
सस्नेह।
दिल से आभार प्रिय कुसुम दी।
हटाएंसादर
प्रेम की पगडंडियों से परे हम
जवाब देंहटाएंपहुँच गए हैं पथरीले रास्तों पर
झंझावातों के काँटे कुरेदते-कुरेदते
उलझनों के घने कोहरे में विलीन
चलने लगे हैं नींद के पैरों से
समझौते की सड़क के किनारे-किनारे। आपकी रचनाएँ बहुत ही मर्मस्पर्शी होती हैं, कुछ पलों के लिए निःशब्द कर जाती हैं - - साधुवाद, आदरणीया अनीता जी - - नमन सह।
आभारी हूँ सर सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया मिली।
हटाएंसादर प्रणाम
वाह!प्रिय अनीता ,बहुत ही खूबसूरत भावों से सजा सृजन ।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार प्रिय शुभा दी।
हटाएंसादर
हम भूलने लगे हैं दरख़्त की छाँव
जवाब देंहटाएंउस पर बने पक्षियों के आशियाने
महकते खिलखिलाते सुर्ख़ फूल
टहनियों से नाज़ुक संबंधों को
अब विचारों के फटे कंबल से
थकते अहसास झाँकने लगे हैं।
बेहद दिलचस्प और हृदयग्राही पंक्तियां
साधुवाद
दिल से आभार आदरणीय वर्षा दी।
हटाएंसादर
सुस्वागतम् 🙏❤️🙏
हटाएंदिल से आभार आदरणीय दी 🙏
हटाएंमजबूरियां ... रिश्तों का बोझ .... और भी बहुत कुछ है जो भुला देता है मधुर यादों का कारवां ... अच्छे कर्मों की याद ... वर्तमान का खुर्दापन ही रहता है याद हमेश ... गहरे भाव ...
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय सर सुंदर सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
ऐसे रुसिया न कर....।
जवाब देंहटाएंजी...बहुत बहुत शुक्रिया।
हटाएं'उलझनों के घने कोहरे में विलीन चलने लगे हैं नींद के पैरों से
जवाब देंहटाएंसमझौते की सड़क के किनारे-किनारे' । मन को गहराई से छू गई आपकी ये पंक्तियां अनीता जी ।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
हटाएंसादर
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
Beautiful penned ✍️✍️📝📝📚📚🖋️🖋️🙏🙏
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