पाखी मन व्याकुल है साथी
खोई-खोई मौन प्रभाती।
भोर धूप की चुनरी ओढ़े
विकल रश्मियाँ लिखती पाती।।
मसि छिटकी ज्यूँ मेघ हाथ से
पूछ रहे हैं शब्द कुशलता
नूतन कलियाँ खिले आस-सी
मीत तरु संग साथ विचरता
सुषमा ओट छिपी अवगुंठन
गगरी भर मधु रस बरसाती।।
पटल याद के सजते बूटे
छींट प्रीत छिटकाती उजले
रंग कसूमल बिखरी सुधियाँ
पीर तूलिका उर से फिसले
स्वप्न नयन में नित-नित भरती
रात चाँद की जलती बाती।।
शीतल झोंका ले पुरवाई
उलझे-उलझे से भाव खड़े
कुसुम पात सजते मन मुक्ता
भावों के गहने रतन जड़े
भीगी पलकें पथ निहारे
अँजुरी तारों से भर जाती।।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
वाह 🌻
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अनुज।
हटाएंसादर
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार( 04-06-2021) को "मौन प्रभाती" (चर्चा अंक- 4086) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
अत्यंत हर्ष हूआ आदरणीय मीना दी शीर्षक में स्वयं की रचना की पंक्ति पाकर।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
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मर्मस्पर्शी पोस्ट
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर रचना, अनिता दी।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय ज्योति बहन।
हटाएंस्नेह बनाए रखे।
सादर
👍 वाह क्या बात है | बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएं🌹दिल से आभार।
हटाएंसादर
मन की कोमलता का भास् लिए सुन्दर शब्द संयोजन ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना है ... आशा है आपका स्वस्थ अब ठीक होगा ... मेरी शुभकामनायें ...
दिल से आभार आदरणीय सर।
हटाएंजी अब ठीक हूँ।
आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
सुन्दर सृजन---
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
मसि छिटकी ज्यूँ मेघ हाथ से
जवाब देंहटाएंपूछ रहे हैं शब्द कुशलता
नूतन कलियाँ खिले आस-सी
मीत तरु संग साथ विचरता
सुषमा ओट छिपी अवगुंठन
गगरी भर मधु रस बरसाती।।
वाह!!!
लाजवाब सृजन...अद्भुत शब्द संयोजन।
दिल से आभार आदरणीय सुधा दी जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया सुंदर प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर स्नेह
अद्भुत शब्द तरंग..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
हटाएंसादर
अद्भुत,लाज़बाब सृजन प्रिय अनीता,मन के भावों को सुंदर शब्दों में पिरोया है तुमने,तुम्हे भी ढेर सारा स्नेह
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय कामिनी दी जी।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
पटल याद के सजते बूटे
जवाब देंहटाएंछींट प्रीत छिटकाती उजले
रंग कसूमल बिखरी सुधियाँ
पीर तूलिका उर से फिसले
स्वप्न नयन में नित-नित भरती
रात चाँद की जलती बाती।। मन के भावों का भावभीना सुंदर वर्णन ।
दिल से आभार आदरणीय जिज्ञासा जी दी।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर स्नेह।
वाह सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंदिल से आभार सखी।
हटाएंसादर स्नेह।
...
जवाब देंहटाएंरात चाँद की जलती बाती"
...
.......वाह! क्या बात है। बहुत सुन्दर पंक्ति
बहुत बहुत शुक्रिया अनुज।
हटाएंसादर
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर अनीता !
जवाब देंहटाएंमुझे अनायास ही जयशंकर प्रसाद की अमर कविता -
'बीती विभावरी जाग री,
अम्बर पनघट में डुबो रही,
ताराघट ऊषा नागरी --'
का स्मरण हो आया.
दिल से आभार आदरणीय सर।
हटाएंआपकी लेखनी से निकले चंद आशीर्वाद भरे शब्द संबल प्रदान करते है। आपके आने से अत्यंत हर्ष हूआ।
आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
बहुत ही खूबसूरत 👌
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ नीतू जी।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंभावों की अथाह गहराई है शब्द शब्द में ।
प्रकृति के कलापों में विरह श्रृंगार के सुंदर बिम्ब उकेरे हैं आपने ।
सुंदर सृजन।
दिल से आभार आदरणीय दी आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (27-2-22) को एहसास के गुँचे' "(चर्चा अंक 4354)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
बहुत सुंदर ंनवगीत ।
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