1.बैरागी री ओढ़णी,
सजै सावणा साथ।
डग डागळा चार भरै,
पकडे कजरी हाथ।।
2. पथ री पीड़ा कुण पढ़े,
लुळ-लुळ चालै आप।
भाटा जद आवै पगां,
मन पीड़ावै धाप ।।
3.आभै आँगणा झुमती,
बुणे बादळी जाल।
गाज गिरावै काळजौ,
सुथरी चालै-चाल ।।
4. छज्जे माथे मोरियो,
बुणे सुखां री छाँव।
सूत करम रौ कातता,
छळे समै रौ दाँव।।
5.धीर धरम धीमे चले,
गीत गावता मौण।
घणा लुभावै चालता,
होवै तिसणा गौण।।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-07-2022) को
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच "दुनिया में परिवार" (चर्चा अंक-4503) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हृदय से आभार सर मंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
आपने सरल भाषा में ही ये दोहे रचे हैं अनीता जी जिन्हें वे भी सुगमता से समझ सकते हैं जो राजस्थानी भाषा से सुपरिचित नहीं हैं। आपके सभी दोहे अच्छे हैं। दूसरे वाले का तो कहना ही क्या ? और 'सूत करम रौ कातता, छळे समै रौ दाँव' एक सनातन सत्य है जिसे किसी को नहीं भूलना चाहिए। अभिनन्दन आपका।
जवाब देंहटाएंराजस्थानी रचनाओं पर आपकी प्रतिक्रिया सदैव मुझे मनोबल प्रदान करती है। आपका आना हर्ष से हृदय भर देता है।अनेकानेक आभार सर आप आए सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंसादर आभार
जीवन के शाश्वत सत्य का दर्शन करवाते अत्यंत सुन्दर दोहे ।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार दी आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा 🙏
हटाएंनीति परक दूहा म्हारै चेतणा रै आंगणै दस्तक देय रहया है। इण तरह रा दूहा सिरजण रौ मोल बधावै।आं दूहां मै मनै भाषा शिल्प अर कथ्य री निरवाली नूंवी छिब री औल्यूं आवै। खूब रंग।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार सर।
हटाएंहृदय से अनेकानेक आभार संबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
सादर
धीर धरम धीमे चले,
जवाब देंहटाएंगीत गावता मौण।
घणा लुभावै चालता,
होवै तिसणा गौण।।
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति
हृदय से आभार आपका।
हटाएंसादर स्नेह
वाह आप तो दोहे भी बहुत खूब लिखती हैं। बहुत बधाई🌷🌷
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आपका प्रिय सखी।
हटाएंसादर
वाह!प्रिय अनीता ,बहुत खूबसूरत दोहे रचे हैं आपनें ।
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार प्रिय शुभा दी जी।
हटाएंसादर स्नेह
दोहा जहां भावों का दोहन कर के संक्षेप में सार कह देना , दो पंक्तियां कभी कभी आधे पृष्ठ पर अपना भाव प्रसारित करती हैं।
जवाब देंहटाएंजिन दो पंक्तियों को हम शिल्प दृष्टि से दोहे जैसा लिख दें पर भाव में गांभिर्य न हो
वो छंद तो हो सकता है पर दोहा नहीं।
प्रिय अनिता आपने सार्थक भावों का दोहन किया है।
राजस्थानी भाषा में ऐसे तो अनंत दोहे सृजित हुए हैं पर राजिया रा दोहा अपने आप में दोहा की परिभाषा के समरूप गहन और गंभीर है।
आज आपके दोहों में मुझे दोहे की सार्थकता साफ दिख रही है।
एक मूल्यवान कार्य सदा आगे बढ़ते रहिए।
बहुत सुंदर सृजन ।
स्नेह में पगे आपके शब्दों ने हृदय को संतोष से भर दिया। सफ़र सुखद लगने लगा। स्नेह आशीर्वाद हेतु अनेकानेक आभार।
हटाएंसादर स्नेह
वाह, बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार सर।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति 👌👌
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आपका।
हटाएंसादर
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं