अनमनेपन का
प्रकृति से अथाह प्रेम
झलकता है
उसकी आँखों से
प्रेम में उठतीं
ज्वार-भाटे की लहरें
किनारों को अपने होने का
एहसास दिलाने का प्रयत्न
बेजोड़पन से करती हैं
एहसास के छिंटों से
भिगोती हैं जीवन
जीवनवाटिका में
फूल बनने की अभिलाषा को
समझकर भी मैं नासमझी की
डोर से ही खींचती हूँ
और धीरे-धीरे समझ को
उसमें डुबो देती हूँ।
उसकी फ़ाइल पेपर की
उलझन से इतर
अक्षर बनने की लालसा का
पनपते जाना
और फिर
वाक्य बन
समाज को छूकर देखना
कविता बन
हृदय में उतरना
तो कहानी बन
आँखों से लुढ़कने की
अथाह चाह
तो कभी
उपन्यास के प्रत्येक पहलू को
घटित होते देखना
उसकी उस लालसा को
न सींच पाने की पीड़ा
मैं भोगी बन हर दिन भोगती हूँ।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 19-02-2021) को
"कुनकुनी सी धूप ने भी बात अब मन की कही है।" (चर्चा अंक- 3982) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मीना जी मेरे सृजन को चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत शुक्रिया श्वेता जी पाँच लिंकों पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय वर्षा जी।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अनुराधा जी।
हटाएंसादर
एहसासों से सजी-सँवरी सारगर्भित रचना।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय शास्त्री जी सर।
हटाएंसादर
अंतर्मन को छूती खूबसूरत रचना..
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय जिज्ञासा जी।
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सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय ओंकार जी।
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संवेदनाओं से सिंचित अहसास।
जवाब देंहटाएंअभिनव अंदाज।
सुंदर सृजन।
दिल से आभार आदरणीय कुसुम दी जी।
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बहुत सुंदर रचना,अनिता दी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय ज्योति जी।
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बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय आलोक जी सर।
हटाएंसादर
उलझन से इतर
जवाब देंहटाएंअक्षर बनने की लालसा का
पनपते जाने
और फिर
वाक्य बन
समाज को छूकर देखना
कविता बन
हृदय में उतरना - - बहुत सुन्दर व अलहदा सृजन।
आभारी हूँ आदरणीय शांतनु सान्याल जी सर।
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घटित होते देखना
जवाब देंहटाएंउसकी उस लालसा को
न सींच पाने की पीड़ा
मैं भोगी बन हर दिन जीती हूँ।
मर्मस्पर्शी रचना..🌹🙏🌹
दिल से आभार आदरणीय शरद जी।
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बेहद सुंदर अभिव्यक्ति प्रिय अनीता
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय कामिनी जी।
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नासमझी की डोर से खींच कर समझ को डूबो देना ... हृदय में उतर गया । अति सुन्दर भाव एवं कथ्य ।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय अमृता जी आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
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सुन्दर
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय सुशील जी सर।
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बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय कविता रावत जी।
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तो कभी
जवाब देंहटाएंउपन्यास के प्रत्येक पहलू को
घटित होते देखना
उसकी उस लालसा को
न सींच पाने की पीड़ा
मैं भोगी बन हर दिन जीती हूँ।,,,,,।।बहुत सुंदर रचना !आदरणीया शुभकामनाएँ ।
आभारी हूँ आदरणीय मधुलिका जी।
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बहुत बहुत सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय दीपक जी।
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बेहतरीन रचना अनिता जी, अद्भुत बधाई हो
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय ज्योति जी।
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सारगर्भित एवं स्वानुभूत अभिव्यक्ति । अभिनंदन अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय जितेंद्र जी।
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...बेहतरीन भावभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय संजय भास्कर जी।
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जीवनवाटिका में
जवाब देंहटाएंफूल बनने की अभिलाषा को
समझकर भी मैं नासमझी की
डोर से ही खींचती हूँ
और धीरे-धीरे समझ को
उसमें डुबो देती हूँ।
इस तरह की नासमझी करनी पड़ जाती है कभी कभी....
गहन भाव लिए लाजवाब सृजन
वाह!!!
सादर आभार आदरणीय सुधा दी मनोबल बढ़ाने हेतु।
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