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शनिवार, सितंबर 23

नदी


नदी / अनीता सैनी 'दीप्ति'

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इंतज़ार में

लौटने की ख़ुशबु होती है

 जैसे- लौट आता है सावन

चंग के साथ फागुनी धमाल।

परंतु

 पहाड़ के अनुराग में

पगी नदी

ज़मीन पर नहीं लौटना चाहती 

पत्थरों की ओट में छिपकर

पहाड़ की आत्मा में खो जाना चाहती है।

समुद्र की तलहटी में खिले

प्रेम पुष्प

मौन से सींचना चाहती है।

जब तुम कहते हो-

नदी को मौन घोंटता है।

तब तुम्हें पलटकर कहती है-

मैं मौन को घोंटती हूँ।

जितना घोटूँगी

प्रीत रंग उतना गहरा चढ़ेगा।

 वह मरुस्थल में नहीं उतरना चाहती

मरुस्थल एक घूँट में पी जाना चाहता है।

और न ही मैदान में दौड़ना चाहती है।

 वहाँ!  तुम उसे 

माँ! कहकर मार देना चाहते हो।

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 25 सितंबर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. वाह वाह पहाड़ के अनुराग पड़ी नदी पहाड़ में खो जाना चाहती है, इसका जवाब नहीं।

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