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शुक्रवार, दिसंबर 1

शिव


शिव / अनीता सैनी ‘ दीप्ति’

….

टूटकर

बिखरी सांसें 

भाव

मोतियों से चमक उठे 

महावर सजे पैर

भोर!

दुल्हन बन उतरी थी

धरती पर।


उस दिन 

समर्पण के सागर में

 तिर रहा था उज्जैन 

भस्म

बादलों से बरसी

मन के एक कोने में उगा 

सूरज

मन मोह रहे थे

 महादेव 

गर्भगृह की चौखट पर बैठी

 मैं 

एक-टक निहार रही थी कि 

हृदय की रिक्तता ने  तोड़ा बाँध 

पलकें भीग गईं 

तब उसने कहा-

“काशी में मिलेंगे तुम्हें

शिव, कबीर

 तुम समर्पण लेते हुए जाना।”

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 02 दिसम्बर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. जय हो महादेव ... सजीव कर दिया ...

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  3. बेहतरीन पंक्तियाँ 🙏

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  4. बेनामी3/12/23, 3:51 pm

    शब्दों को अलंकृत करती हुई आपकी रचना

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