भाग-१
मनस्वी की बुद्ध से प्रीत
अंतस के विचारों में मग्न मनस्वी
स्मृति पन्नों में टोहती स्वयं की छवि
आत्मलीन हो कहे- बियाबान ही साथी
एकांतवास विधना की थाती।
जीवनपथ के सब साथी झरे
ज्यों पतझड़ पेड़ से पाती झरे
उलझीं-उलझीं जब जीवन लताएँ
रथ खींचे संग सत गाथाएँ ।
झाड़-झंकार के काँटे चुभे,जले पाँव
वृक्षों की न छाँव मिली न मिली ठाँव
जेठ दोपहरी की तपती रेत पर
ज्यों हल जोते खेतिहर अदृश्य खेत पर।
कोरे आसमान ने सहलाया
चाँद-सितारे संगी-साथी सबने बहलाया।
पवन ने प्रीत से लाड़ लड़ाया
रश्मियों ने पथ पर उजास छलकाया।
हाय! काली रात डराती बहुत थी
गोद चाँदनी की सुहाती बहुत थी
इच्छा-अनिच्छा का खेल था भारी
मुक्त हुई कैसे,न जानूँ क्रम अभी था जारी।
फिर-फिर दुख रुलाता रहता
हृदय भी नीर बहाता रहता
दुख बीता या नयना सूखे
दुख-सुख हुए पाषाण अब न जीवन दुखे।
कामना रही न कोई शेष न कोई चाह
मन के संतोष को मिली थी राह
व्यग्र छलना अति चतुर रहती सवार
हाय! उसी डगर पर मिलती बारंबार।
मन टूटा, तन टूटा,टूटा न अटूट विश्वास
मोह-माया का टूटा पिंजर मुक्त हुई हर श्वास
देह धरती पर जले दीप-सी आत्मा में उच्छवास
मनस्वी को मिला बुद्धत्व पहना उन्हीं-सा लिबास।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
'मन टूटा, तन टूटा,टूटा न अटूट विश्वास
जवाब देंहटाएंमोह-माया का टूटा पिंजर मुक्त हुई श्वाँस
देह धरती पर जले दीप-सी आत्मा में उच्छवास
मनस्वी को मिले बुद्ध पहना उन्हीं का लिबास।'
सुंदर कविता! आनंद आ गया।
आभारी हूँ आदरणीय अरविन्द जी सर सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया मिली।मनोबल बढ़ाने हेतु अनेकों आभार।
हटाएंसादर
"मनस्वी की बुद्ध से प्रीत"
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक और भावभीनी प्रस्तुति।
आभारी हूँ आदरणीय शास्त्री जी सर आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
बहुत ही बढ़िया , मन को छू गई ये कविता अनिता जी, बधाई हो
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय ज्योति जी आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया मिली।सादर
हटाएंमन टूटा, तन टूटा,टूटा न अटूट विश्वास
जवाब देंहटाएंमोह-माया का टूटा पिंजर मुक्त हुई हर श्वाँस
देह धरती पर जले दीप-सी आत्मा में उच्छवास
मनस्वी को मिला बुद्धत्व पहना उन्हीं सा लिबास।
पूरी कविता बेहतरीन है....और ये चार पंक्तियां उनमें भी श्रेष्ठतम...
बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
दिल से आभार आदरणीय दी मनोबल बढ़ाने हेतु।
जवाब देंहटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
मनस्वी और महात्मा बुद्ध साथ ही आपने लिखा है भाग-१ ..दूसरे भाग की प्रतीक्षा रहेगी । पूरी कविता बहुत बेहतरीन
जवाब देंहटाएंलगी । बधाई एवं शुभकामनाएं ।
दिल से आभार आदरणीय मीना दी।
हटाएंकोशिश करुँगी आपकी भावनाओं पर खरा उतरने की।
स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
सादर नमस्कार दी।
हटाएंयहाँ महात्मा बुद्ध से तात्पर्य गौतम बुद्ध से नहीं है यह पात्र प्रतीक हैं। (आध्यातम का)
मनस्वी (मानव का अंस से लिया गया है)
यहाँ दोनों हो पात्र काल्पनिक है।
सादर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2057..."क्या रेड़ मारी है आपने शेर की।" ) पर गुरुवार 04 मार्च 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 05-03-2021) को
"ख़ुदा हो जाते हैं लोग" (चर्चा अंक- 3996) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
सादर आभार आदरणीय मीना दी चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर आपकी प्रतिक्रिया मिली।
हटाएंसादर
जीवनपथ के सब साथी झरे
जवाब देंहटाएंज्यों पतझड़ पेड़ से पाती झरे
उलझीं-उलझीं जब जीवन लताएँ
रथ खींचे संग सत गाथाएँ ।
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई आदरणीया अनीता जी।।।।
आभारी हूँ सर आपकी प्रतिक्रिया मिली।
हटाएंसादर
वाह अद्भुत!
जवाब देंहटाएंप्रतीकात्मक शैली में लिखी गई गहन सुंदर रचना।
बुद्ध यहां प्रतीक है सिद्धत्व का, मनस्वी प्रतीक है किसी ऐसी मानवी या नारी का जिसके मानस में सांसारिक जंजालों से निकल कर मुक्ति को पाने की चाह जगी है और वो प्रयास रत है संसारिक बंधनों को छोड़कर कैसे बुद्धत्व को अग्रसर हो ।और राह में आते सभी प्रारब्ध और आकर्षनों से स्वयं को कैसे दूर करें।
बहुत बहुत सुंदर सृजन।
भावपक्ष सुदृढ़।
सुंदर शब्दों का प्रयोग।
अभिनव अभिराम।
दूसरे भाग का इंतजार रहेगा।
सस्नेह।
दिल से आभार आदरणीय कुसुम दी सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु। आपने हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाया है एक बार फिर अनेकों अनेकों आभार दिल से।
हटाएंस्नेह आशीर्वाद यों ही बनाए रखे।
सादर
बेहतरीन रचना सखी 👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय अनुराधा जी।
हटाएंसादर
वाह ! बुद्धत्व की यात्रा और मंजिल तक पहुँचने का सुंदर चित्रण
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय अनीता जी।
हटाएंसादर
बुद्धत्व मिल जाय तो माया मोह सब अपने आप नदारद हो जाता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
दिल से आभार आदरणीय कविता रावत जी।
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बड़ी प्रभावी कविता है अनीता जी यह । अभिनंदन ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय जितेंद्र माथुर जी।
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मनस्वी और बुद्धत्त्व एकाकार हो गए . गहन भावाभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय संगीता दी जी।
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हर छंद अपने आप में परिपूर्णता लिए हुए..अध्यात्म और दर्शन दोनों का अनोखा चित्रण..
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय जिज्ञासा दी जी।
हटाएंवाह! बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय गगन शर्मा जी सर।
हटाएंसादर
वाह!प्रिय अनीता ,अद्भुत सृजन ।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार प्रिय शुभा दी जी।
हटाएंसादर
दुख सुख के इस भंवर जाल में उलझते सुलझते मनस्वी बुद्धत्व की ओर अग्रसर है....।
जवाब देंहटाएंइच्छा अनिच्छा के खेल से मुक्ति पाने का क्रम में तन मन तोड़कर विश्वास जुटाकर बुद्धत्व को पा उनका लिबास पहन मनस्वी आगे के सफर पर चल पड़ा है....भाग एक बहुत ही प्रभावशाली मनमुग्ध करता लाजवाब बन पड़ा है ...अगले भाग के इंतजार में...
सुंदर और सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु तहे दिल से आभार आदरणीय सुधा दी।
हटाएंसादर
कोई जवाब नही लाजवाब लेखन
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय शेरु सोलंकी जी सर।
हटाएंसादर
मार्मिक एवम भावपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय उर्मिला दी जी।
हटाएंसादर
बहुत ही सुंदर सृजन, अनिता।
जवाब देंहटाएंदिल से आभार आदरणीय ज्योति दी जी
हटाएंदेह धरती पर जले दीप-सी आत्मा में उच्छवास
जवाब देंहटाएंमनस्वी को मिला बुद्धत्व पहना उन्हीं-सा लिबास।
बहुत सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन प्रिय अनीता
दिल से आभार आदरणीय कामिनी दी जी
हटाएंसादर
देह धरती पर जले दीप-सी आत्मा में उच्छवास
जवाब देंहटाएंमनस्वी को मिला बुद्धत्व पहना उन्हीं-सा लिबास।
बहुत सुंदर रचना 🌹🙏🌹
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय शरद जी।
हटाएंसादर
लम्बी कविता की सुंदर शुरूआत
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर अनीता !
जवाब देंहटाएंऐसे काव्य-प्रयोग में मेरी अपनी गति नहीं है किन्तु मैंने इसका भरपूर आनंद उठाया.
सबसे अच्छी बात मुझे इस कविता में यह लगी कि कथा कहने में तुम्हारा प्रयास सहज भी है और उस में प्रवाह भी है.
आभारी हूँ आदरणीय सर।
हटाएंअत्यंत हर्ष हुआ आपकी सार्गर्भित प्रतिक्रिया प्राप्त हुई।
इस दिशा में क़दम बढ़ाना सार्थक है मेरा।
आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर