निर्विकार के उठते हिलकोरे
पग-पग पर करते प्रबुद्ध
उर बहती प्रीत सरित
ममता के पदचाप में बुद्ध।
श्वेत कपोत आलोक बिखेरे
मौन वाणी करुणा की शुद्ध
बोधि-वृक्ष बाँह फैलाए
मानवता की छाप में बुद्ध।
मिलन-बिछोह न भेदे मन
आकुलता संतोषी अबिरुद्ध
दुःख दिगंबर भाव भरता
पंछी के आलाप में बुद्ध।
हवा परतों में शील-प्रज्ञा
गीत कल्याणी गूँजे अनिरुद्ध
मधु घुलता जन-जन हृदय में
समता के हर जाप में बुद्ध।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'