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सोमवार, जुलाई 30

बैरी सावन



दोहे 

बैरी   सावन  माह  बना , पिया  बसे   प्रदेश
मैं   विरहणी  रोती  फिरूँ, नैन निर  नहीं शेष ।

शब्द प्यार में अल्प है ,गहरे लेना भाव।
प्रेम मेरा स्वीकार हो,दिल पर करो न घाव।

नजरों से दूर हो,भेजा है पैगाम।
साजन राह निहारती,गोरी सुबह शाम।

राह निहारें गोरड़ी ,लेकर साजन नाम।
कब आओगे  पीवजी,हुई सुबह से शाम।

बैरी मन लागे नहीं,पिया बसे परदेश।
जिवङो तरसे दिन रेन, नयनन जोए बाट।

दर्पण देख गोरड़ी ,फिर फिर कर सिंगार
रूठ न जावें  पीवजी,सोचे यह हर बार।

पल-पल राह निहारती,घड़ी - घड़ी  बैचैन।
साजन तेरी याद में,बरसे नित ही नैन। 

-अनीता सैनी 

गुरुवार, जुलाई 26

मेरी ज़िंदगी मेरी बहन

     

रब  से माँगू यही  दुआ,मिले ख़ुशियों का जहां  ,
न  हो  आँख में  आँसू, हो न कभी मेरे दिल से ज़ुदा।

फूल-सी  कोमल  पारस-सी  पाक,
यह   वजूद   रहा   उसकी   साख।

तारों  की  झिलमिलाती  रोशनी,
   चाँद-सी  चमक  रही   वह ,
धड़कन   सीने  में  दिल, धड़कन   रही  वह ।

मेरी  चाहत  मेरा  मक़ाम  रही   वह ,
झाँकती  हूँ  आईने   में  परछाई   रही   वह  ।

मासूम   चेहरा ,  नादानी   का   पहरा,
दिल  बहुत  साफ़ , ज़ख़्म    बहुत   गहरा।

मुहब्बत   बहुत  है  किनारा  करना  पड़ा ,
डगर   कठिन  है    जीना   सिखाना   पड़ा ।
                                     - अनीता सैनी

शुक्रवार, जुलाई 6

ज़िंदगी

"ज़िंदगी   "

चली जा रही  ज़िंदगी वह   ,
  हवाओं से भी तेज़,
ठहरी  न एक पल ,
 होश  भी गुमराह  हुए,
गुरुर-सूरुर का पहन  चोला ,
मगरुर हुई  जा रही है।
ज़िंदगी   है  वह,
  तन्हा   चली जा रही है |
तुम नहीं थे साथ में, 
लिये अश्क जा रही।
लोटे हो तुम देखो! 
आलम न पूछो ,
खिलखिलाती आ रही वह  ।।

 #अनीता सैनी