मिल जाता मकाम
मज़िल क़दमों में होती
अपनों के साथ चलने की कशिश ,
और न मुहब्बत होती ,
न जाने हर कोई हर बार यही कहता ।
मज़िल क़दमों में होती
अपनों के साथ चलने की कशिश ,
और न मुहब्बत होती ,
न जाने हर कोई हर बार यही कहता ।
आसां होता अकेले चलना ,
न पैरों की उलझन ,
न कोई सताता ,
न पैरों की उलझन ,
न कोई सताता ,
हो जाता है मायूस ,
जब न मिले ख़ुशियों का हिस्सेदार,
मिले न कोई ग़मों को पहरेदार ।
जब न मिले ख़ुशियों का हिस्सेदार,
मिले न कोई ग़मों को पहरेदार ।
बदल रहा परिवेश, हो रहा है क्लेश ,
बिक गये रिश्ते, हो रहा निवेश ।
बिक गये रिश्ते, हो रहा निवेश ।
बेशुमार दिखावा ,
उमड़ रहा सैलाब मुहब्बत का
हर कोई बह रहा !!
न डूब रहा , और न बच रहा कोई
उमड़ रहा सैलाब मुहब्बत का
हर कोई बह रहा !!
न डूब रहा , और न बच रहा कोई