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शुक्रवार, जुलाई 6

ज़िंदगी

"ज़िंदगी   "

चली जा रही  ज़िंदगी वह   ,
  हवाओं से भी तेज़,
ठहरी  न एक पल ,
 होश  भी गुमराह  हुए,
गुरुर-सूरुर का पहन  चोला ,
मगरुर हुई  जा रही है।
ज़िंदगी   है  वह,
  तन्हा   चली जा रही है |
तुम नहीं थे साथ में, 
लिये अश्क जा रही।
लोटे हो तुम देखो! 
आलम न पूछो ,
खिलखिलाती आ रही वह  ।।

 #अनीता सैनी

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