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बुधवार, नवंबर 30

उसका जीवन



उसका जीवन देखा?
यह जीवन भी कोई जीवन है
व्यर्थ है… एक दम व्यर्थ!
उसे मर जाना चाहिए
हाँ! मर ही जाना चाहिए
आख़िर बोझ है धरती का 
हाँ!बोझ ही तो है 
हर एक व्यक्ति
हर दूसरे व्यक्ति की ओर
इशारा करता हुआ कहता है।
कहते हुए वह झाड़ रहा होता है अपने कपड़े
और साथ ही अपनी जीभ।

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

बुधवार, नवंबर 9

स्त्री भाषा



 

परग्रही की भांति

धरती पर नहीं समझी जाती

स्त्री की भाषा

भविष्य की संभावनाओं से परे 

किलकारी की गूँज के साथ ही 

बिखर जाते हैं उसके पिता के सपने

बहते आँसुओं के साथ 

सूखने लगता है

माँ की छाती का दूध

बेटी के बोझ से ज़मीन में एक हाथ 

धँस जाती हैं उनकी चारपाई 

दाई की फूटती नाराज़गी 

दायित्व से मुँह मोड़ता परिवार

माँ कोसने लगती हैं 

 अपनी कोख को 

उसके हिस्से की ज़मीन के साथ

छीन ली जाती है भाषा भी 

चुप्पी में भर दिए जाते हैं

मन-मुताबिक़ शब्द 

सुख-दुख की परिभाषा परिवर्तित कर  

जीभ काटकर

 रख दी जाती है उसकी हथेली पर 

चीख़ने-चिल्लाने के स्वर में उपजे

शब्दों के बदल दिए जाते हैं अर्थ 

ता-उम्र  ढोई जाती है उनकी भाषा

एक-तरफ़ा प्रेम की तरह।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'