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बुधवार, नवंबर 30

उसका जीवन



उसका जीवन देखा?
यह जीवन भी कोई जीवन है
व्यर्थ है… एक दम व्यर्थ!
उसे मर जाना चाहिए
हाँ! मर ही जाना चाहिए
आख़िर बोझ है धरती का 
हाँ!बोझ ही तो है 
हर एक व्यक्ति
हर दूसरे व्यक्ति की ओर
इशारा करता हुआ कहता है।
कहते हुए वह झाड़ रहा होता है अपने कपड़े
और साथ ही अपनी जीभ।

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

11 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीया मैम, सादर प्रणाम । वर्तमान प्रीपेक्ष में बहुत ही सटीक, मन को सीधा जा कर लगने वाली रचना । सच , यह दुखद ही है कि आज एक मनुष्य दूसरे मनुष्य का शुभ नहीं मना पाता । एक दूसरे पर निरंतर भड़ास निकालते रहना, एक -दूसरे की निंदा करना और एक-दूसरे के विषय में सतत अनुचित और कटु बोलना और सोंचना । काश कि ह एक -दूसरे से स्नेह और सौहार्द रख, सभी के सुख के लिए मंगल-कामना करे । और दूसरों के लिए बिना-बात पर बुराई करने से पहले अपने भीतर की बुराई को कम करने का प्रयास करें । इस मन को झकझोरने वाली सशक्त पर अत्यंत रुचिकर तरीके की रचना के लिए हार्दिक आभार व सादर प्रणाम ।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 01 दिसंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  3. वाह!प्रिय अनीता ,शानदार सृजन । हृदय को अंदर तक स्पर्श गई ।

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  4. वाह ! गज़ब का व्यंग ! उम्दा !

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  5. दूसरों पर उँगली उठानेवालों की सोच पर तीखा व्यंग्य।

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  6. हाँ! बोझ ही तो है
    हर एक व्यक्ति
    हर दूसरे व्यक्ति की ओर
    इशारा करता हुआ कहता है।
    कहते हुए वह झाड़ रहा होता है अपने कपड़े
    और साथ ही अपनी जीभ ।
    गहरे तंज के साथ दूसरों में कमी ढूँढने वाली सोच पर प्रहार करती रचना ।

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  7. परनिंदा से बढ़कर कोई अधमता नहीं, गहरा कटाक्ष करतीं अचूक पंक्तियाँ, इसे पढ़कर अपनी तरफ़ देखे बिना कोई रह नहीं सकता

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  8. जीवन के सजीव दृश्य दिखाती सटीक अभिव्यक्ति।
    हृदय स्पर्शी भाव कहीं चेतना को मथते हुए।

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  9. आदरणीया ,
    हमने मनुष्य होकर भाषा रूपी अमूल्य निधि पाई और कैसे दुरुपयोग हो रही , इसका सुन्दर शब्द बिम्ब रचा है आपने
    सीधे मन को चुभती बेबाक अभिव्यक्ति के लिए साधुवाद
    जय श्री कृष्ण जी !

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  10. कहते हुए वह झाड़ रहा होता है अपने कपड़े
    और साथ ही अपनी जीभ।
    वाह.. गहन और सटीक अभिव्यक्ति । बधाई अनीता जी ।

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  11. Hey,
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