Powered By Blogger

सोमवार, फ़रवरी 1

आंख्यां सूनी जोवे बाट




 राजस्थानी लोक भाषा में एक नवगीत।


गोधुली की वेला छंटगी

साँझ खड़ी है द्वार सखी

मन री बाताँ मन में टूटी 

बीत्या सब उद्गार सखी।।


मन मेड़ां पर खड़ो बिजूको

झाला देर बुलावे है 

धोती-कुरता उजला-उजला 

हांडी  शीश हिलावे है

तेज़ ताप-सी जलती काया 

विरह कहे  शृंगार सखी।।


पाती कुरजां कहे कुशलता 

नैना चुवे फिर भी धार

घड़ी दिवस बन संगी साथी

चीर बदलता बारम्बार 

घूम रह्यो जीवन धुरी पर

विधना रो उपहार सखी ।।


आती-जाती सारी ऋतुआँ

छेड़ स्मृति का जूना पाट  

झड़ी लगी है चौमासा की

 आंख्यां सूनी जोवे बाट 

कोंपल जँइया आस खिलाऊँ 

प्रीत नवलखो हार सखी।।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'


अनुवाद 

गोधुली की घड़ियाँ बीत गई

साँझ खड़ी है द्वार सखी

मन की बातें मन में टूटी 

बीते सब उद्गार सखी।।


हृदय मेड़ पर खड़ा बिजूका

दे आवाज बुलाता है

धोती-पहने उजली-उजली 

गगरी शीश हिलाता है

तेज़ ताप-से जलती काया 

विरह करे शृंगार सखी।।


पाती कुरजां कहे कुशलता 

नैन छूट रही जल धार

घड़ी दिवस बन संगी साथी

चीर बदलते बारम्बार 

घूम रहा जीवन धुरी पर

विधना का उपहार सखी ।।


आती-जाती सारी ऋतुएं

खोलें क्यों स्मृति के पाट  

झड़ी लगी है चौमासे की

सूने दृग निहारे बाट 

कोंपल जैसे आस खिलाऊँ 

प्रीत नौ लखा हार सखी।।

47 टिप्‍पणियां:

  1. गोधुली की बैला छंटगी
    साँझ खड़ी है द्वार सखी
    मन री बाँता मन में टूटी
    बीत्या सब उद्गार सखी।।
    अद्भुत...अप्रतिम । हृदयस्पर्शी भाव समेटे बेहद उम्दा राजस्थानी गीत।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. दिल से आभार आदरणीय मीना दी।
      आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-02-2021) को  "ज़िन्दगी भर का कष्ट दे गया वर्ष 2021"  (चर्चा अंक-3966)
     
     पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

      हटाएं
  3. प्रिय सखी ,आपने बहुत ही चौख्खो (शानदार)गीत लिखा है ,मन आनंदित हो गया ।आपकी कलम को प्रणाम 🙏🏼

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. थारो घणो-घणो आभार प्यारी बाई-सा...नवगीत न चौख्खो बतायो...मन घणो ख़ुश होयो।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  4. बहुत प्यारा गीत प्रिय अनीता जी..मन आनंदित हो गया सखी..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. दिल से आभार प्रिय सखी।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  5. बहुत सुन्दर अनीता. राजस्थानी बोली समझने में थोड़ी कठिनाई अवश्य हुई है लेकिन गीत के भाव समझ में आ गए हैं. इस गीत के साथ इसका हिंदी भावार्थ भी दे दो.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी जरुर सर जल्द ही भावार्थ प्रकाशित करती हूँ।
      सहृदय आभार।
      सादर प्रणाम।

      हटाएं
  6. म्हारी ओर सँ घणी घणी शुभ कामना
    आछी लिखरी हो
    घणो घणो सनेह |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जले पर नमक मत छिड़को...।
      घणो-घणो आभार थाने चौख्खो लाग्या नवगीत।
      दिल से आभार।
      सादर

      हटाएं
  7. घणों सौनौं लाग्यो गीत घणों घणों स्नेह।

    अप्रतिम लोक भाषा का अनुठा विरह श्रृंगार सृजन।

    यह एक विरह नवगीत है चुंकि मारवाड़ी राजस्थान की लोक भाषा है तो कुछ शब्द काफी लोगों को शायद भावों को समझने में व्यवधान उत्पन्न कर रहे होंगे ।
    एक सुंदर नवगीत है तो मैं इसका भावार्थ करने से अपने को नहीं रोक पाई
    आप सब भी आनंद लिजिए।
    नायिका जिसका पति परदेश में रख रहा है, वो उसका इंतजार कर रही है और आज फिर गौधुली का समय बीत कर साँझ ढ़लने को है पर प्रियतम नहीं आये उनके आने पर जो कहना था सभी उद्गार मन में ही टूट गये।

    मन रूपी मेड़ पर बिजुके सा
    प्रियतम इशारे से बुलाया है
    जिसने बहुत उजले से कपड़े पहन रखें है।और गगरी जैसा सर हिलाकर पास आने का संकेत करता है।
    काया का श्रृंगार भी अब विरह ही है।

    *कुरजां एक प्रवासी पक्षी है और* *राजस्थान में उसका वर्णन* *संदेश वाहक के रूप में* *गीत और काव्य में सदियों से* *किया जाता है ।*
    अब नायिका कह रही है कि कुरजां के साथ पत्र में सभी कुशलता के समाचार मिले पर
    आँखों से आंसूओं की धार निरन्तर बह रही है।
    दिन और घड़ियां ही उसकी संगी साथी हैं , मौसम के मौसम बदल रहें हैं, जीवन बस एक धुरी पर घूम रहा है, ये शायद भाग्य का विधान है।
    ऋतुएं बदती हुई यादों के पुराने पर्दे खोल जाती है, चौमासे की बरसात की झड़ी लगी है पर नैन अब रिक्त हो कर प्रतीक्षा कर रहे हैं। फिर भी खिलती कली जैसी आशा है मन में मिलन की और मेरा प्यार( नौ लखा)अमुल्य है।
    (अभी भी आशा है प्रिय जरूर आयेंगे)

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. निशब्द हूँ प्रिय दी।
      और दिल से आभारी भी हूँ आपकी ।
      आपने अपना अनमोल समय निकाला और नवगीत का भवार्थ लिखा जिससे सृजन में चार चाँद लग गए।
      सादर प्रणाम दी 🙏
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।

      हटाएं
  8. वाह... बेहद दिलचस्प

    राजस्थानी गीत.. वह भी अनुवाद सहित
    साधुवाद

    🙏🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  9. अनुवाद और मूल रचना दोनों मनभावन हैं

    सादर प्रणाम

    जवाब देंहटाएं
  10. प्रीत नौलखा हार सखी!--सुंदर अभिव्यक्ति!--ब्रजेंद्रनाथ

    जवाब देंहटाएं
  11. आती-जाती सारी ऋतुएं

    खोलें क्यों स्मृति के पाट

    झड़ी लगी है चौमासे की

    सूने दृग निहारे बाट

    कोंपल जैसे आस खिलाऊँ

    प्रीत नौ लखा हार सखी।।
    बहुत सुंदर नवगीत,अनिता दी।

    जवाब देंहटाएं
  12. वाह बहुत खूबसूरत और भावप्रवण गीत

    जवाब देंहटाएं
  13. आती-जाती सारी ऋतुआँ

    छेड़ स्मृति का जूना पाट

    झड़ी लगी है चौमासा की

    आँख सूनी जोवे बाट, राजस्थानी मिठास से उभरती हुई रचना मुग्ध करती है - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीय सर आपकी प्रतिक्रिया मिली।
      सृजन सार्थक हुआ।

      हटाएं
  14. उत्तर
    1. आप की प्रतिक्रिया प्राप्त हुई दी मैं मेरा मन भी मुग्ध हुआ।
      हार्दिक आभार
      सादर

      हटाएं

  15. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ५ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु।
      सादर

      हटाएं
  16. एक राजस्थानी होने के नाते मैं आपकी मूल रचना का भलीभांति रसास्वादन कर पाया तथा उसके मर्मस्पर्शी भाव को अपने हृदय में अनुभूत कर पाया । असीमित अभिनंदन आपका इस मनोहर राजस्थानी गीत के लिए ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर।
      सृजन सार्थक हुआ आपकी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई।
      सादर

      हटाएं
  17. क्या कहने
    बहुत सुंदर गीत
    वाह
    बधाई

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर सृजन सार्थक हुआ आपके आने से।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  18. प्रीत नवलखो हार !
    घणी सोवणी बात कई अनिता जी। राजस्थानी मीठी बोली में मधुर गीत, मनोहारी रचना। और ये कुरजां तो विरही जनों के लिए मोर से भी प्यारी होती है ना
    मेरी एक रचना से कुछ पंक्तियाँ -
    मेरी एक रचना से :
    पाती प्रिय के नाम की
    कुरजां तू ले जाय ।
    पथ जोवत अँखियाँ थकीं,
    प्राण निकल ना जाय ।।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय मीना जीजी थारी टिप्णी मिली।मन ख़ुश हुयो।
      नवगीत न सराहना मिली... थारे शब्दा में और निख़र गयो। बहुत ही सुंदर लाइना है थारी।
      आपणो साथ योंही बणो रह।
      सादर

      हटाएं
  19. वाह बेहद शानदार

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. दिल से आभार आदरणीय दी।
      अत्यंत हर्ष हुआ।
      सादर

      हटाएं
  20. वाह!!!!
    बहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर....आपके राजस्थानी गीत एवं सभी टिप्पणियों ने मन मोह लिया कुसुम जी के अनुवाद ने सच में चार चाँद लगा दिये....बहुत ही लाजवाब भावपूर्ण भावाभिव्यक्ति
    बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीय सुभा दी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं