विरह
समय का सोता जब
धीरे-धीरे रीत रहा था
मैंने नहीं लगाए मुहाने पर पत्थर
न ही मिट्टी गोंदकर लगाई
भोर घुटनों के बल चलती
दुपहरी दौड़ती
साँझ फिर थककर बैठ जाती
दिन सप्ताह, महीने और वर्ष
कालचक्र की यह क्रिया
स्वयं ही लटक जाती
अलगनी पर सूखने
स्वाभिमान का कलफ अकड़ता
कि झाड़-फटकार कर
रख देती संदूक के एक कोने में
प्रेम के पड़ते सीले से पदचाप
वह माँझे में लिपटा पंछी होता
विरक्ति से उनमुख मुक्त करता
मैं उसमें और उलझ जाती
कौन समझाए उसे
सहना मात्र ही तो था
ज़िंदगी का शृंगार
विरह मुक्ति नहीं
इंतज़ार का सेतु चाहता था।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
बढिया रचना शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंप्रेम के पड़ते सीले से पदचाप
जवाब देंहटाएंवह माँझे में लिपटा पंछी होता
मुक्ति से अनजान मुक्त स्वयं से करता
बेहतरीन रचना
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति, अनिता दी।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ मई २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
कमाल की अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंकौन समझाए उसे
जवाब देंहटाएंसहना मात्र ही तो था
ज़िंदगी का शृंगार
विरह मुक्ति नहीं
इंतज़ार का सेतु चाहता था।---सुंदर रचना
मन न जाने कहाँ कहाँ भटकता है । धैर्य ही रख कर इंतज़ार करना होता है । गहन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना👌👌
जवाब देंहटाएंसुन्दर एवं भावपूर्ण गद्य-गीत !
जवाब देंहटाएं👌👏👏👏🌹🌹🌹
जवाब देंहटाएंअंतर के दर्द को उकेरती हृदय स्पर्शी पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंविरह मुक्ति नहीं
इंतज़ार का सेतु चाहता था।
गज़ब !
आद्रता समेटे विरह श्रृंगार।
ब्लॉग पर मिले विरह में पगे भाव। उत्कृष्ट रचनाओं का तांतां।
जवाब देंहटाएंभावों से उबरे जीवन वैराग्य में डूब जायेगा।
बधाई स्वीकारे आदरणीया।
शायद कभी राधा और मीरा ने भी यही कहा हो.... हृदह को भेदती हुई ....बहुत ही सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंNice Sir .... Very Good Content . Thanks For Share It .
जवाब देंहटाएं( Facebook पर एक लड़के को लड़की के साथ हुवा प्यार )
( मेरे दिल में वो बेचैनी क्या है )
( Radhe Krishna Ki Love Story )
( Raksha Bandhan Ki Story )
( Bihar ki bhutiya haveli )
( akela pan Story in hindi )
( kya pyar ek baar hota hai Story )