उतावलेपन में डूबी इच्छाएँ
दौड़ती हैं
बेसब्री-सी भूख की तरह
प्रसिद्धि के लिबास में
आत्मीयता की ख़ुशबू में सनी
पिलाने मर्म-स्पर्शिनी
उफनते क्षणिक विचारों की
घोंटी हुई पारदर्शी घुट्टी
और तुम हो कि
निर्बोध बालक की तरह
भीगे कपासी फाहे को
होठों में दबाए
तत्पर ही रहते हो पीने को
अवचेतन में अनुरक्त हैं
विवेक और बुद्धि
चिलचिलाती धूप का अंगवस्त्र
कंधों पर रहता है तुम्हारे
फिर भी
नहीं खुलती आँखें तुम्हारी
भविष्य की पलकों के भार से
अनजान हो तुम
उस अँकुरित बीज की तरह
जिसका छिलका अभी भी
रक्षा हेतु उसके शीश पर है
वैसे ही हो तुम
कोमल बहुत ही कोमल
नवजात शिशु की तरह
तभी तुम्हें प्रतिदिन पिलाते हैं
भ्रमिक विचारों की घोंटी हुई घुट्टी।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
वाह!!बहुत खूब !!
जवाब देंहटाएंचिंतनपरक सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दी।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ अनुज।
हटाएंसादर
छिलका हटेगा तो अक्ल आएगी और फिर प्रतिदिन भ्रमिक विचारों की घोंटी हुई घुट्टी पीने से बचे रहेंगे
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
सही कहा आपने।
हटाएंआभारी हूँ आपकी प्रतिक्रिया से सृजन को प्रवाह मिला।
सादर
सच्चाई से अवगत कराती गहरे अर्थों को समोए अद्भुत रचना
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
प्रसिद्धि के लिबास में
जवाब देंहटाएंआत्मीयता की ख़ुशबू में सनी
पिलाने मर्म-स्पर्शिनी
उफनते क्षणिक विचारों की
घोंटी हुई पारदर्शी घुट्टी
और तुम हो कि
निर्बोध बालक की तरह
भीगे कपासी फाहे को
होठों में दबाए
तत्पर ही रहते हो पीने को
एक तो प्रसिद्धि ऊपर से आत्मीयता ...बस ये तो सबको बड़े संत जान पड़ते हैं। उनके क्षणिक विचारों के घुट्टी पीने में संशय तक नहीं कर पाती भोली जनता...।
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब सृजन।
आभारी हूँ सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु सृजन का मर्म स्पष्ट करने हेतु दिल से आभार आदरणीय सुधा दी जी।
हटाएंसादर
उतावलेपन में डूबी इच्छाएँ
जवाब देंहटाएंदौड़ती हैं
बहुत ही सुन्दर सृजन
आभारी हूँ अनुज।
हटाएंसादर
बहुत ही सुन्दर सृजन, अनिता।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ ज्योति बहन।
हटाएंसादर
आज के समय की कटु सच्चाई बयां करती उत्कृष्ट रचना ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय जिज्ञासा दी जी प्रतिक्रिया से संबल प्राप्त हुआ।
हटाएंसादर
विचारोत्तेजक अभिव्यक्ति है यह आपकी अनीता जी। इसे पढ़ना ही पर्याप्त नहीं; इसे गुना भी जाना चाहिए, आत्मसात् भी किया जाना चाहिए।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय जितेंद्र माथुर जी सर सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन को प्रवाह मिला।
हटाएंसादर
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (18-06-2021) को "बहारों के चार पल'" (चर्चा अंक- 4099) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
आभारी हूँ मीना दी चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
बहुत ही सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर।
हटाएंसादर
बहुत ही उम्दा ।
जवाब देंहटाएंअच्छे औऱ सच्चे विचार ।
सादर
आभारी हूँ सर।
हटाएंप्रतिक्रिया से संबल प्राप्त हुआ।
सादर
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सर।
हटाएंसादर
कोमल बहुत ही कोमल
जवाब देंहटाएंनवजात शिशु की तरह
तभी तुम्हें प्रतिदिन पिलाते हैं
भ्रमिक विचारों की घोंटी हुई घुट्टी।
सुंदर सृजन प्रिय अनीता जी
आभारी हूँ आदरणीय कामिनी दी।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर रचना सखी 👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय अनुराधा दी।
हटाएंसादर
भ्रमित विचारों की घुट्टी पिलाना !
जवाब देंहटाएंवाह अनीता !
बड़ी गहरी चोट करने वाला अभिनव प्रयोग !
आभारी हूँ सर आपकी प्रतिक्रिया से संबल मिला।
हटाएंमार्गदर्शन करने हेतु दिल से आभार।
आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
मर्म तक उतरता उद्बोधन।
जवाब देंहटाएंचिलचिलाती धूप का अंगवस्त्र
कंधों पर रहता है तुम्हारे
फिर भी
नहीं खुलती आँखें तुम्हारी।
सटीक प्रहार, शानदार प्रतीकात्मक शैली।
काश आँखे खुल पाती।
सुंदर सृजन।
आभारी हूँ आदरणीय कुसुम दी जी आपकी प्रतिक्रिया से सृजन को प्रवाह मिला।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
वाह!बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंचुप्पी के पीछे का राज बहुत पसंद आया।
लिखती रहो ।
जी बहुत बहुत शुक्रिया।
हटाएंसादर
भ्रमित विचारों की घुट्टी पियो या न पियो यह समाज के सामूहिक व्यवहार पर निर्भर है.
जवाब देंहटाएंजब तक लोग भ्रमित विचारों की घुट्टी का निहितार्थ समझ पाते हैं तब तक घुट्टी का निर्माण करनेवाले ठेकेदार नए कलेवर और स्वाद की महाभ्रामक घुट्टी से समाज को दिग्भ्रमित करने लगते हैं.
समाज के दोहरे चरित्र पर व्यंग्य की छटा बिखेरती विचारणीय रचना.
आभारी हूँ सर सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया।
हटाएंवाह। बहुत बढ़िया🙏
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सीमा जी।
हटाएंसादर