Powered By Blogger

गुरुवार, फ़रवरी 3

विरक्ता भाव



प्रीत नगरिया हेलो मारे 

हिया उफण अतियोग रह्या।

भाव विरक्ता सोवे-जागे 

किण पहरा संजोग रह्या।।


शांत पात री छाया ओढ्या 

शीतळ झोंक रो उद्गार।

दूबड़ धरती हिवड़ा सजनी 

काळजड़ रो है सिणगार।

मन री आख्या मुंडो देख्यो 

ल्यूँ बलाएँ सुयोग रह्या।।


खड़ी खेजड़ी खेता माही 

सांगर-सी अभिलाष झड़े।

 बाळू  हांण्ड्य है बोराई 

धोरा रो सिणगार जड़े।

निरमोही री भगती ठाडी 

 जाग्या पूरणयोग रह्या।।


 झरबेरी रा बेरू बिणयां 

 भाव गठरिया याद रही।

खाट्टा-मीठा थाने अर्पण

 झाबा री अळबाद रही।

कंठ मौन मोत्याँ री माळा

विधणा रा ऐ योग रह्या।।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

शब्दार्थ 

हेलो-तेज़ स्वर में आवाज़ देना

उफण -उफनना 

अतियोग-अतिशयता

विरक्ता-अनुरागहीनता

किण-किस 

ओढ्या-ओढ़ना 

हांण्ड्य-घूमना 

काळजड़-हृदय 

सिणगार-सिंगार 

मुंडो-मुँह 

देख्यो-देखा 

बेरू-बेर 

बिणयां-बिनना 

थाने-तुम्हें 

माळा-माला 

अळबाद-ठिठोली करना

33 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!प्रिय अनीता ,बहुत ही खूबसूरत सृजन। विरहिणी के हृदय के भावो को बहुत ही खूबसूरती के साथ उकेरा है ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, अनिता दी।

    जवाब देंहटाएं
  3. उत्तर
    1. हृदय से आभार आदरणीय गगन जी सर।
      सादर

      हटाएं
  4. झरबेरी रा बेरू बिणयां
    भाव गठरिया याद रही।
    खाट्टा-मीठा थाने अर्पण
    झाबा री अळबाद रही।
    बहुत सुन्दर भाव पिरोये हैं आपने अनीता जी ! मनमोहक नवगीत रचा है जिसमें आंचलिकता की महक है ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदय से आभार आदरणीय मीना दी जी मनोबल बढ़ाती सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर स्नेह

      हटाएं
  5. झरबेरी रा बेरू बिणयां
    भाव गठरिया याद रही।
    खाट्टा-मीठा थाने अर्पण
    झाबा री अळबाद रही।
    कंठ मौन मोत्याँ री माळा
    विधणा रा ऐ योग रह्या।।

    मन की व्यथा को व्यक्त करते हुए बहुत ही खूबसूरत और भावनात्मक रचना!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदय से आभार प्रिय मनीषा जी खूबसूरत प्रतिक्रिया हेतु
      सादर स्नेह।

      हटाएं
  6. Jude hmare sath apni kavita ko online profile bnake logo ke beech share kre
    Pub Dials aur agr aap book publish krana chahte hai aaj hi hmare publishing consultant se baat krein Online Book Publishers

    जवाब देंहटाएं
  7. ये विरक्ता भाव समष्टिगत होकर एक अलग ही टीस उठा रहा है। अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदय से आभार प्रिय अमृता दी जी आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा। स्नेह आशीर्वाद बनाए रखें।
      सादर स्नेह

      हटाएं
  8. लोकभाषा में अनुपम सृजन बहुत बधाइयाँ

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर सराहनीय अभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदय से आभार आदरणीय जिज्ञासा जी।
      सादर

      हटाएं
  10. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (09-02-2022) को चर्चा मंच      "यह है स्वर्णिम देश हमारा"   (चर्चा अंक-4336)      पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ सर मंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

      हटाएं
  11. बेहद खूबसूरत सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  12. वाह अनीता, आनंद आ गया लेकिन आँखें भर आईं.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर प्रणाम सर।
      आप तक सृजम का मर्म पहुँचा।
      लिखना सार्थक हुआ।
      सादर

      हटाएं
  13. अंततः सब कुछ विधना के योग पर ही तो आकर ठहर जाता है अनीता जी। मन को छू गया आपका यह गीत्।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदय से आभार सर आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
      सादर

      हटाएं
  14. खाट्टा-मीठा थाने अर्पण

    झाबा री अळबाद रही।- अति मार्मिक और सत्य

    जवाब देंहटाएं
  15. विरह श्रृंगार का अनुपम सृजन, परिमार्जित होकर लेखनी नित्य और भी निखर रही है।
    शानदार बिंब और प्रतीक सुंदर व्यंजनाएं।
    सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदय से आभार आदरणीय कुसुम दी जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु। आपका स्नेह अनमोल है यों ही बनाए रखें।
      सादर स्नेह

      हटाएं