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शुक्रवार, जनवरी 28

अजन्मो गीत



हिया पाट थे खोलो ढोला 

झाँके भोर झरोखा से।

खेचर करलव सो धड़के है 

गीत अजन्मो गोखा से ।।


उठे बादळी गहरी घुमड़े 

सोय आखरा भाव भरे।

मनड़े भींत्या डंकों बाजे 

छवि साहेबा री उभरे।

बोल अजन्मे रा है फूटे

ढुळे ख्याल ज्यों सोखा से।।


चूळू भर-भर सौरभ छिड़कूँ

लय मतवाळी थिरक रही।

सूर तार बाँधू ताळा रा 

अभी व्यंजना मिथक रही।

फूल रोहिड़ा रा है बिखरा 

खुड़के झँझरी नोखो से।।


गोदी माही भाव सुलाऊं 

जीवण हिंडोला हिंडे।

झपक्या सागे लुढ़क सुपणो

हिम बूँद कपोला खींडे।

मुळक्य सिराणों ढळत पहरा 

पीर पूछ ली धोखा से।।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

शब्द -अर्थ 

किंवाड़ा-दरवाजा 

खेचर-पक्षी 

बादळी-बादल

गोखा-खिड़की 

आखरा-अक्षर 

 भींत्या-भींत ,दीवार 

ख्याल -भाव

 सोखा-चतुराई 

चूळू-अंजुरी 

मतवाळी-मतवाली 

ताळा-ताल 

खुड़के-आवाज़

नोखो-विचित्र

झपक्या-झपकी 

मुळक्य-हँसना 

ढळते-लुढ़कना

सिराणों -तकिया