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मंगलवार, अगस्त 25

बाढ़


अखबार के खरदरे पन्नों की 
हैडिंग बदली न मौलिक तस्वीर 
कई वर्षों से ढ़ोते आए हैं ये  
बाढ़ के  पानी का बोझिल भार 
न पानी ने बदला रास्ता अपना  
न बहने वालो ने बदले घरों ने द्वार  
प्रत्येक वर्ष बदलती पानी की धारा 
कभी पूर्व तो कभी पश्चिम 
 बिन बरसात ही डूबते घर-बार  
 निर्बोध मन-मस्तिष्क
 देह के अस्थि-पिंजर बह जाते   
कटाव समझ के वृक्ष का होता
 आदि-यति सब बहते साथ   
कुछ बंजारे बीज संघर्ष के बोते 
 कुछ खोते जीवन की सूक्ष्म मेंड़ 
 न उठ पाते न उठने देते नियति के फेर 
उमसाए सन्नाटे में बढ़ी बाढ़ की डोर ।

©अनीता सैनी 'दीप्ति'