[ वाकपटु ]
बार-बार वर्दी क्यों छिपाती है, माँ ?
मेरे पहनने पर प्रतिबंध
इतना क्यों घबराती है, माँ ?
मोह में बँधी है इसलिए या
किनारा अकेलेपन से करती है, माँ ?
ऊहापोह में उलझी, है उदास
कुछ कहती नहीं क्यों है ख़ामोश
विचारों की साँकल से जड़ी ज़बान
कल्पना के पँख पर सवार इच्छाएँ
क्यों उड़न भरने से रोकतीं हैं, माँ ?
खुला आसमां पर्वत की छाँव
प्रकृति संग,
साथ पंछियों का भाता बहुत
चाँद-सितारों से मिलकर बतियाना
बड़े होते अंगजात देख
क्यों अधीर हो जाती है, माँ ?
प्रीत के लबादे में लिपटी
वर्दी खूँटी पर टंगी बुलाती है
सितारे कतारबद्ध जड़े हों कंधे पर
ऐसे विचार पर विचारकर
वाकपटु कह
क्यों उद्विग्न हो जाती है, माँ ?
@अनीता सैनी 'दीप्ति'