शब्द /अनीता सैनी ‘दीप्ति’
….
हवा-पानी
और प्रकाश की तरह
शब्दों की भी
सरहदें नहीं होती,
शब्द
दौड़ते हैं
ध्वनि वेग से
मूक-अमूक भावों के
स्पर्श हेतु
संवेदनाओं का नाद
गहरा प्रभाव छोड़ता है
हृदय पर
क्योंकि शब्द
हृदय की उपज है
मुख की नहीं।
शब्द /अनीता सैनी ‘दीप्ति’
….
हवा-पानी
और प्रकाश की तरह
शब्दों की भी
सरहदें नहीं होती,
शब्द
दौड़ते हैं
ध्वनि वेग से
मूक-अमूक भावों के
स्पर्श हेतु
संवेदनाओं का नाद
गहरा प्रभाव छोड़ता है
हृदय पर
क्योंकि शब्द
हृदय की उपज है
मुख की नहीं।
ज़िद की झोली कंधों पर लादे आए !
शब्दों के झुरमुट को
चौखट से लौटाया मैंने
ओस की बूँदों ने बनाया बंधक
बग़ीचे की बेंच पर ठिठुरते देखे!
मुझ बेसबरी से रहा नहीं गया
बहलाने निकली उन्हें
परंतु चाहकर भी कुछ कहा नहीं गया
तो क्या सभी सँभालकर रखते हैं ?
शब्दों के उलझे झुरमुट को
क्योंकि शब्दातीत में समाहित होते हैं
अर्थ के अथाह भंडार
झरने का बहना चिड़िया का चहकना
प्रभात की लालिमा में क्षितिज का समाना
या निर्विकार चित्त की संवेदना तो नहीं शब्द?
मरु से मिली ठोकरें सिसकती वेदना तो नहीं है?
कृत्रिम फूलों पर मानव निर्मित सुगंध हैं शब्द?
तो क्या? भावों के भँवर में उलझी ज़िंदगियाँ हैं ?
अंतस का पालना झुलाती शब्दों को मैं
तभी तो,चाहकर भी कुछ कहा नहीं गया।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'