हिंद देश की हिंदी के मासूम मर्म का ग़ुबार,
मानव मस्तिष्क सह न सका,
क़दम-दर-क़दम धँसाता गया शब्दों को,
बिखर गये भाव पैर पाताल को छूने-से लगे |
अस्तित्त्व आहत हुआ हिंदी का,
आह से आहतीत बिखरती-सी गयी,
प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष शब्दार्थ,
शब्दों की क्लिष्टता में उलझी,
सकुंचित हो सिमटती-सी गयी |
पेड़ों के झुरमुट में सजाया उसने,
अलबेले कोहरे से आशियाना आकाँक्षा का,
हल्की धूप उमड़ी आकर्षक अंग्रेज़ी की,
अनचाहा आवरण गढ़ हिंदी को ओझल-सी कर गयी |
सीप-सी तलब तलाशती हिंदी हृदय में,
स्वाति नक्षत्र में बरसती बूंदों-सा,
इंतज़ार अधरों को रहा अनकहा,
अनकहे शब्दों में तब्दील होती गयी,
अनकहे शब्दों में तब्दील होती गयी,
अंतस के सुशोभित भावों में भटकी ,
अथाह प्रेम काल का निगल-सा गया,
सम्पूर्ण समर्पण का ग़ुबार लिये वक़्त,
वक़्त-दर-वक़्त सह न सका,
सवाल बनी न जवाब मिला,
समर्पण के भाव में बिखरती-सी गयी |
मातृत्व का मरहम है हिंदी अब,
अंग्रेज़ी का टेस्टी टॉनिक बन गया,
अथाह प्रेम शब्दों में भाव पवित्र उसके,
अंतरमन में ही उलझ-सी गयी,
संस्कृत, हिंदी का बदलता स्वरुप,
उसी के शब्दों में सिमटता-सा गया |
# अनीता सैनी
मातृत्व का मरहम है हिंदी अब,
जवाब देंहटाएंअंग्रेज़ी का टेस्टी टॉनिक बन गया,
माँ के वात्सल्य बिना व्यक्तित्व कब निखार पाता है । उम्मीद तो है कि वह समय भी शीघ्र आए की हिंदी को उसका पूरा सम्मान और गौरव मिले । कल हिन्दी दिवस है ..इस सन्दर्भ पर प्रकाश डालती खूबसूरत रचना अनु ।
तहे दिल से आभार आदरणीया मीना दी जी
हटाएंसादर स्नेह
पेड़ों के झुरमुट में सजाया उसने,
जवाब देंहटाएंअलबेले कोहरे से आशियाना आकाँक्षा का,
हल्की धूप उमड़ी आकर्षक अंग्रेज़ी की,
अनचाहा आवरण गढ़ हिंदी को ओझल-सी कर गयी |
बेहतरीन रचना दीदी। मार्मिक।
बहुत बहुत शुक्रिया अनुज
हटाएंसादर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
वाह!सखी ,अद्भुत!!👍
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 14 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
प्रिये श्वेता दी आप का तहे दिल से आभार मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में स्थान देने के लिये |
हटाएंसादर
हिंदी दिवस की शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंहिंदी को लेकर समाज की उदासीनता और हिंदी के संवर्धन के लिये सरकारी रूढ़िगत यथास्थितिवादी सोच पर गहन विमर्श प्रस्तुत करती है आपकी अभिव्यक्ति। केवल हिंदी दिवस पर हिंदी की दशा और दिशा पर चिंतन-मनन की औपचारिक्ता से इतर अब रचनात्मक पहल की महती आवश्यकता है। नई पीढ़ी तो अब हिंदी के मानक रूप से अनभिज्ञ होती जा रही है जो गंभीर चिंता का विषय है।
सहृदय आभार आदरणीय मार्गदर्शन हेतु |आप ने हमेशा मेरा उत्साहवर्धन किया |आप का सानिध्य यूँ ही बना रहे |
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सादर
सार्थक लेखन, जय हिन्दी
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय उत्साहवर्धन हेतु |आप की समीक्षा मिलना बड़े गौरव की बात है |
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सादर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (16-09-2019) को "हिन्दी को वनवास" (चर्चा अंक- 3460) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चा मंच पर मुझे स्थान देने के लिये |
हटाएंसादर
सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति सखी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार बहना
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