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बुधवार, मई 6

संजीदगी संग प्रश्न


तहजीब के मन्वंतर में,
भ्राँतिक अभिनय जग का खेल,   
अंधेरे में बंद ज़िंदगियाँ है,  
 समय-दीपक में नहीं है तेल। 

दबे पैरों की आहट थी  वो,  
रहस्य की ध्वनि है  मौन,  
भविष्य के गर्भ में छिपे चेहरे,  
वे तिलिस्मी लुटेरे कौन? 

निस्तब्ध मटमैले जलाशय  में,
अनचीह्नी झाँकती है आकृति,
ललाट पर बिखरी सलवटें,
नुकीले दाँत,अहं-दंश की है आवृत्ति।

हल्की काली पट्टी नैनों पर,
अवचेतन का है सारा खेल,
शून्य बिंदु-सा है गलियारा,
सत्य रथ की बुझी है मशाल।

संजीदगी संग प्रश्न अनुत्तरित,
रिसते निरंकुशता के गहरे घाव, 
उन्मुख अंबर को है ताकता,  
दीप्ति-दृग,सौम्य मुख प्रादुर्भाव।


©अनीता सैनी 'दीप्ति'

28 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धन करती समीक्षा हेतु.
      सादर

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  2. सृजन का बुनियादी उद्देश्य समाज को आईना दिखाना,संवेदना को जगाए रखना और सकारात्मकता से परिपूर्ण मानस के निर्माण हेतु सामाजिक मूल्यों की स्थापना करना है। रचना में अनेक ज्वलंत प्रश्न गौण रूप में निहित हैं जो पाठक से संवाद करते हुए नकारात्मकता से उबरने का संदेश देती है।

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    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय आपकी समीक्षात्मक टिप्पणी से रचना का भाव विस्तार हुआ है सुंदर सारगर्भित समीक्षा हेतु आभार.
      आशीर्वाद बनाये रखे.

      हटाएं
  3. दबे पैरों की आहट है वो,
    रहस्य की ध्वनि है मौन,
    भविष्य के गर्भ में छिपे चेहरे,
    वे तिलिस्मी लुटेरे कौन?
    बहुत ही सुन्दर ...लाजवाब
    उत्कृष्ट सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया दीदी उत्साहवर्धन करती सुंदर समीक्षा हेतु.
      आशीर्वाद बनाये रखे.

      हटाएं
  4. सादर नमस्कार,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (08-05-2020) को "जो ले जाये लक्ष्य तक, वो पथ होता शुद्ध"
    (चर्चा अंक-3695)
    पर भी होगी। आप भी
    सादर आमंत्रित है ।

    "मीना भारद्वाज"

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी चर्चामंच पर मुझे स्थान देने हेतु.
      सादर

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  5. गहरी भाव समेटे सुंदर सृजन अनीता जी

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    1. सादर आभार आदरणीया कामिनी दीदी सुंदर समीक्षा हेतु.
      सादर

      हटाएं
  6. आदरणीया अनीता जी, आपने रहस्य के मौन को इस कविता में मुखरित कर दिया है। गहरे अर्थ को संजोती, शब्दों में भावों काअर्थ संवारती सुन्दर रचना। आपकी ही पंक्तियाँ :
    संजीदगी संग प्रश्न अनुत्तरित,
    रिसते निरंकुशता के गहरे घाव,
    उन्मुख अंबर को है ताकता,
    दीप्ति-दृग,सौम्य मुख प्रादुर्भाव। --ब्रजेन्द्र नाथ

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    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय आपकी समीक्षा ने रचना का मान बढ़ाया है और मर्म स्पष्ट किया है. उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत आभार. आशीर्वाद बनाये रखे.
      सादर.

      हटाएं
  7. उत्कृष्ट सृजन अनिता जी

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    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय दीदी उत्साहवर्धन करती समीक्षा हेतु.
      स्नेह आशीर्वाद बनाये रखे.

      हटाएं
  8. उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया दीदी सुंदर समीक्षा हेतु.
      सादर

      हटाएं
  9. बहुत सुंदर प्रस्तुति बहना

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया दीदी सुंदर समीक्षा हेतु.
      स्नेह आशीर्वाद बनाये रखे.

      हटाएं
  10. आदरणीया अनीता जी को मेरा प्रणाम,
    आपकी रचना को पढ़ कर लगा कि शब्द और भाव का ऐसा आपसी समन्वय बहुत ही कम देखने को मिलता है । बहुत ही सुंदर रचना है आपकी । जिस तरह से आपके ब्लाग का नाम है गुंगी गुड़िया उसके ही भावों को आपने शब्दरूप में परिवर्तित कर दिया है ।
    मेरी एक रचना है इसी पर मां और उसकी कोख - https://kuchhadhooribaate.blogspot.com/2020/04/blog-post.html को पढ़ कर एक बार मार्गदर्शन अवश्य करें ।
    हल्की काली पट्टी नैनों पर,
    अवचेतन का है सारा खेल,
    शून्य बिंदु-सा है गलियारा,
    सत्य रथ की बुझी है मशाल।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया और रचना पर अपनी पसंद ज़ाहिर करने के लिए.सुंदर सारगर्भित समीक्षा हेतु सादर आभार.
      आशीर्वाद बनाये रखे
      सादर.
      समय मिलते ही आपका ब्लॉग पढूंगी 🙏
      https://kuchhadhooribaate.blogspot.com/2020/04/blog-post.html

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  11. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 11 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया दीदी पाँच लिंकों पर मुझे स्थान देने हेतु.
      सादर

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  12. समसामयिक चिंतन को गंभीर भावों में गूँथकर रची गयी शानदार अभिव्यक्ति अनु।
    बेहतरीन सृजन जिसकी रचनात्मकता में गहन अर्थ निहित हैंं।

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    उत्तर
    1. सादर आभार प्रिय श्वेता दीदी सारगर्भित समीक्षा हेतु.
      आशीर्वाद बनाये रखे.
      सादर

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  13. वाह!प्रिय सखी अनीता ,बेहतरीन भावाभिव्यक्ति ।

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    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया दीदी उत्साहवर्धन करती समीक्षा हेतु.
      सादर

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  14. अनंत गहनता समेटे प्रश्न पुछती रचना! रहस्य सदा मौन ही होता है रहस्य जब बोल जाता रहस्य कहां रहता।
    कुदरत के बहुत से कार्य अपने में राज समेटे रहते हैं और उनकि सटीक उत्तर सदा अनुत्तरित रहता है ।
    रहस्य समेटे सुंदर काव्य।

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    1. सादर आभार आदरणीया कुसुम दीदी आपकी समीक्षा हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाती है.
      सादर

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