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बुधवार, अगस्त 19

बिछुए


अनिर्वचनीयता
 आदर्श कृति में दृष्टि अंतर्मुखी 
जीवन मूल्यों की धनी 
ज़बान पर सुविचार  रखती 
संस्कार महकते देह पर 
अपेक्षा की कसौटी पर सँवरती 
सतकर्म हाथों में पहन  
मृदुल शब्दों का दान करती 
उलझनें पल्लू में दबा 
आँगन में चिड़िया-सी चहकती 
कोने-कोने से बटोरती प्रीत 
कभी पेट पकड़ भूखी सो जाती 
इच्छा की मौली बाँधते रिश्ते 
मनोकामना बन बरसती 
है संवेदनाओ से भरा कुंभ   
पथरीली डगर पर डग भरती 
संयोग में हर्षाती 
वियोग में विरहणी बन मुरझाती  
अँगुलियों में उलझे  बिछुए-सा 
नित-नित भाग्य अपना बटोरती।

©अनीता सैनी 'दीप्ति'

27 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 19 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार आदरणीय संध्या दैनिक में स्थान देने हेतु।
      सादर प्रणाम

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  2. पथरीली डगर पर डग भरती
    संयोग में हर्षाती
    वियोग में विरहणी बन मुरझाती
    अँगुलियों में उलझी
    बिछुआ भाग्य अपना बटोरती।
    हृदयस्पर्शी..अति सुन्दर !!

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    1. सादर आभार मीना दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  3. नारी के अंतर निहित कर्तव्यों और उनका बोध, स्वयं मन से वहन करना, नदी की अविरल धारा जैसा प्रवाह लिए उत्कृष्ट रचना।

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    1. तहे दिल से आभार प्रिय कुसुम दी सृजन को सुंदर समीक्षा से नवाज़ने हेतु। स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  4. बहुत ही सुंदर,कर्त्वयों की डोर से बंधी,चूड़ियों और बिछुओं में उलझी नारी के मनोदशा का सुंदर चित्रण अनीता जी

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    1. तहे दिल से आभार प्रिय कामिनी दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर प्रणाम

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  6. उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  7. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20.8.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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    1. सादर आभार आदरणीय चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  8. उँगली में उलझे बिछुए सा....
    बहुत चुभते थे बिछुए। मैंने पहनने से मना कर दिया। स्त्री को चुभनेवाली चीजों और बातों का बहिष्कार करना आना चाहिए अब..... कविता का शब्द शिल्प बहुत सुंदर है।

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    1. सही कहा आपने आदरणीय मीना दी।चुभनेवाली चीजों और बातों का बहिष्कार करना आना चाहिए अब..
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  9. अपने माधुर्य में तमाम धूप-छाँव के ताने-बाने समेटे अद्वितीय कविता.
    अभिनन्दन, अनीता जी.

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    1. तहे दिल से आभार आदरणीय नूपुरं बहन उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  10. बहुत सुंदर प्रिय अनीता! बिछुवे के माध्यम से नारी की संस्कारगत विवशता को बहुत ही सटीकता से उजागर किया हुई तुमने | सस्नेह

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    1. तहे दिल से आभार आदरणीय रेणु दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  11. वाह ... बिछुए पर भी इतना मधुर भाव उत्पन किया है आपने ...
    सुन्दर रचना ...

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    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर प्रणाम

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  12. कभी पेट पकड़ भूखी सो जाती
    इच्छा की मौली बाँधते रिश्ते
    मनोकामना बन बरसती
    सच में उलझने पल्लू में दबाती...
    बिछुए सी चुभन भरी जिन्दगी जीती
    वाह!!!
    उत्कृष्ट सृजन

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