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रविवार, अक्तूबर 18

जब भी मिलती हूँ मैं



जब भी मिलती हूँ मैं 
शब्दों से परे एक-एक की ख़ामोशी 
आँखों के झिलमिलाते पानी में पढ़ती हूँ।

कोरी क़िताब के सफ़ेद पन्ने 
पन्नों में हृदय के कोमल भाव 
भावों के बिखरे मोती शब्दों से चुनती हूँ।

सूरज की रोशनी चाँद की आभा 
कृत्रिमता से सुदूर प्रकृति की छाँव  में 
निश्छल बालकों का साहस पढ़ती हूँ।

गर्व में डूबा मन इन्हें सेल्यूट करता 
पैरों में चुभते शूल एहसास सुमन-सा देते 
आत्ममुग्धता नहीं जीवन में त्याग पढ़ती हूँ ।

परिवर्तन के पड़ाव पर जूझती सांसें 
सेवा में समर्पित सैनिक बन सँवरतीं हैं  
समाज के अनुकूल स्वयं को डालना पढ़ती हूँ।

समय सरहद सफ़र में व्यतीत करती आँखें 
आराम  आशियाने  में  ढूँढ़तीं  
गैरों से नहीं अपनों से सम्मान की इच्छा पढ़ती हूँ।

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

30 टिप्‍पणियां:

  1. कृत्रिमता से सुदूर प्रकृति की छाँव में
    निश्छल बालकों का साहस पढ़ती हूँ।
    गर्व में डूबा मन इन्हें सेल्यूट करता
    पैरों में चुभते शूल एहसास सुमन का देते
    आत्ममुग्धता नहीं जीवन में त्याग पढ़ती हूँ ।
    बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...ऐसा लगा जैसे एक आदर्श शब्द चित्र सृजित हो रहा हो आँखों के समक्ष ।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 18 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार आदरणीय दी सांध्य दैनिक पर स्थान देने हेतु ।

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  3. सुन्दर और सार्थक सृजन।
    शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकानाएँ।

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  4. बहुत खूब ल‍िखा अनीता जी, ...सूरज की रोशनी चाँद की आभा
    कृत्रिमता से सुदूर प्रकृति की छाँव में
    निश्छल बालकों का साहस पढ़ती हूँ।
    गर्व में डूबा मन इन्हें सेल्यूट करता
    पैरों में चुभते शूल एहसास सुमन-सा देते
    आत्ममुग्धता नहीं जीवन में त्याग पढ़ती हूँ ।...वाह

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    1. तहे दिल से आभार आदरणीय दी मनोबल बढ़ाने हेतु।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर मनोबल बढ़ाने हेतु.

      हटाएं
  6. उम्दा प्रस्तुति।

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  7. सूरज की रोशनी चाँद की आभा
    कृत्रिमता से सुदूर प्रकृति की छाँव में
    निश्छल बालकों का साहस पढ़ती हूँ।
    एक संवेदनशील कवि मन हर तरह के मौन और खामोशी को बखूबी पढ़ता है...
    बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक सृजन।

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    1. सादर आभार आदरणीय दी मनोबल बढ़ाने हेतु।

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  8. उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर मनोबल बढ़ाने हेतु।

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  9. वाह ! कुछ और पढ़ने की ज़रुरत ही क्या है?

    ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय !

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    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर प्रणाम

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  10. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 23-10-2020) को "मैं जब दूर चला जाऊँगा" (चर्चा अंक- 3863 ) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.

    "मीना भारद्वाज"

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    1. दिल से आभार आदरणीय मीना दी चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  11. बहुत अच्छी व सशक्त रचना है |

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