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बुधवार, फ़रवरी 16

साथी



ढलती साँझ विदाई की बेला

अकुलाए भावों का उफनना।

आँखों से ओझल धुँधराए 

ख्याल से घट का छलकना।


पाखी! धड़कनों का कलरव

उपहार में हृदय बिछाया है।

पैरों को हौले-हौले रखना

फूलों में प्रीत को छिपाया है।


उमगते-निमगते चाँद-सूरज

चाँदनी आँचल फैलाएगी।

टेडी-मेढी पगडंडियों पर

प्रीत जुगनुओं-सी जगमगाएगी।


अविराम शून्य में डूबती लहर 

 या हो बीते पलों का एहसास।

 गीत ग़म के न गुनगुना साथी 

 खुशियों का पहनना लिबास।


तुम चले हो नए पथ की ओर

मिले छाँव हँसती भोर साथी।

हृदय हमारा सुनता रहेगा अब

स्मृतियों की उठती हिलोर साथी।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

37 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.02.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4344 में दिया जाएगा| ब्लॉग पर आपकी आमद का इंतजार रहेगा|
    धन्यवाद
    दिलबाग

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    1. हार्दिक आभार सर मंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  2. Bahut sundar madam aapne Sena police ka naam uncha kar diya

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    1. जी हृदय से आभार सेना पुलिस का गौरव आप सभी से है। मान देने हेतु हृदय से आभार।
      सादर

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  3. Very nice poem mam, Thank you for writing like this

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  4. ढलती साँझ विदाई की बेला

    अकुलाए भावों का उफनना।

    आँखों से ओझल धुँधराए

    ख्याल से घट का छलकना।बहुत ही सुंदर रचना,

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीया।
      सादर

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  5. भावों का करवा बहा ले गया। बहुत ही सुंदर।

    पाखी! धड़कनों का कलरव
    उपहार में हृदय बिछाया है।
    पैरों को हौले-हौले रखना
    फूलों में प्रीत को छिपाया है... हृदय भर आया।
    खुश रहना, खूब लिखो।

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  6. बेहद खूबसूरत रचना

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  7. बहुत सुंदर रचना,अनिता दी।

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  8. तुम चले हो नए पथ की ओर

    मिले छाँव हँसती भोर साथी।

    हृदय हमारा सुनता रहेगा अब

    स्मृति-आँगन में भावों का शोर साथी।
    प्रिय के लिए शुभ भावनाओं से सजी सुंदर रचना

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    उत्तर
    1. हृदय से आभार आदरणीय अनीता जी।
      सादर

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  9. पाखी! धड़कनों का कलरव

    उपहार में हृदय बिछाया है।

    पैरों को हौले-हौले रखना

    फूलों में प्रीत को छिपाया है।


    बहुत ही खूबसूरत सृजन प्रिय मैम!

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    1. हृदय से आभार प्रिय मनीषा जी।
      बहुत बहुत सारा स्नेह।
      सादर

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  10. ढलती साँझ विदाई की बेला
    अकुलाए भावों का उफनना।
    आँखों से ओझल धुँधराए
    ख्याल से घट का छलकना।
    बहुत मर्मस्पर्शी भावों से सजी हृदयस्पर्शी रचना ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदय से आभार आदरणीय मीना दी जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  11. अविराम शून्य में डूबती लहर

    या हो बीते पलों का एहसास।

    गीत ग़म के न गुनगुना साथी

    खुशियों का पहनना लिबास।.. जीवन तो कटु अनुभवों की परछाई लेकर चलता रहता है,परंतु अगर खुशी का दामन पकड़े रहे तो जीवन सरल बन पड़ता है ।मन को छूती सुंदर रचना ।

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    उत्तर
    1. हृदय से आभार आदरणीय जिज्ञासा जी प्रतिक्रिया से सृजन को नवाजने हेतु।
      सादर

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  12. अद्भुत!
    क्यों छेड़ देते हो यूं मौन तारों को,
    शांत झील में कंकरी आलोडती है अंतर को
    कुछ ऐसा कह कर चले जाते हो साथी
    गहन कहीं गहरे तक झकझोडती है अंतर को।
    श्र्लाघ्य।

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    उत्तर
    1. आपका स्नेह आशीर्वाद मिला आदरणीय कुसुम दी जी अत्यंत हर्ष हुआ। आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
      हवाओं की बेचैनियों को
      कहाँ समझता है झोंका
      अपनी धुन में मुग्धया
      अकुलाहट को देता है धोका।

      स्नेह आशीर्वाद यों ही बना रहे।
      सादर स्नेह दी।

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