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गुरुवार, मार्च 17

टोह


स्मृति पन्नों पर बिखेर गुलाल

  हृदय से उन्हें लगाऊँ।

जोगन बन खो जाऊँ प्रीत में 

रूठें तो फिर-फिर मनाऊँ।


 साँझ लालिमा-सी संवरूँ 

टूट तारिका-सी लिपटू गलबाँह में।

धवल चाँदनी झरे चाँद से

अबीर बन सुख लूटूँ प्रीत छाँह में।


एक-एक पन्ने पर वर्षों ठहरुँ

मुँदे द्वार खोल माँडू माँडने।

अल्हड़ मानस की टाँगू लड़ियाँ

टूटे भावों को बैठूँ साँठने।


प्रीत पैर बँधु बन पैजनियाँ

थिरक बजूँ पी आँगन में।

टोह अन्तहीन पारावार-सी

व्याकुल पाखी की अंबर में।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

25 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ मार्च २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    उत्तर
    1. हृदय से आभार आपका आदरणीय श्वेता दी जी मंच पर स्थान देने हेतु। समय पर नहीं पहुँच पाई माफ़ी चाहती हूँ।
      सादर स्नेह

      हटाएं
  2. होली के अवसर पर सारे,
    रंगों को मैं ले आऊँ,
    और तुम्हारे जीवन में मैं,
    उन रंगों को बिखराऊँ...
    रंगोत्सव की शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका आशीर्वाद मुझ तक पहुंचा अनेकानेक आभार आदरणीय यशोदा दी जी।
      आपको भी हार्दिक बधाई।
      सादर

      हटाएं
  3. –वाह! बहुत सुन्दर
    शुभकामनाओं के संग बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रीत पैर बंधु बन पैजनियाँ
    थिरक बजूँ पी आँगन में।
    टोह अन्तहीन पारावार-सी
    व्याकुल पाखी की अंबर में।
    अत्यंत सुंदर !! रंगोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदय से आभार दी मनोबल बढ़ाने हेतु।
      सादर

      हटाएं
  5. अनोखा बिम्ब, अनोखी भाव प्रवणता.... अनोखा प्रेम स्पर्श। अति सुन्दर सृजन।

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    उत्तर
    1. अनेकानेक आभार आपका सृजन सार्थक हुआ आपकी प्रतिक्रिया मिली।
      सादर

      हटाएं
  6. वाह बहुत सुन्दर भाव, प्रीत पैर बंधु बन पैजनियाँ

    थिरक बजूँ पी आँगन में।

    टोह अन्तहीन पारावार-सी


    व्याकुल पाखी की अंबर में

    जवाब देंहटाएं
  7. स्नेह सिक्त सुंदर रचना ,भाव प्रणव सुंदर समर्पित शृंगार भाव
    अभिनव व्यंजनाएं।
    गहन एहसास उकेरी शब्दावली।

    जवाब देंहटाएं
  8. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-03-2022) को चर्चा मंच     "कवि कुछ ऐसा करिये गान"  (चर्चा-अंक 4378)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

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  9. भक्ति भाव में डूबी सरस रचना

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  10. प्रेम-भक्‍ति-आराधना का बहुत सुंदर शब्‍दचित्रण कियाअनीता जी आपने...क्‍या ख्‍ाूब ही कहा है कि...साँझ लालिमा-सी संवरूँ

    टूट तारिका-सी लिपटू गलबाँह में।

    धवल चाँदनी झरे चाँद से

    अबीर बन सुख लूटूँ प्रीत छाँह में।..वाह

    जवाब देंहटाएं
  11. प्रीत पैर बंधु बन पैजनियाँ
    थिरक बजूँ पी आँगन में।
    टोह अन्तहीन पारावार-सी
    व्याकुल पाखी की अंबर में।
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर सृजन
    लाजवाब।

    जवाब देंहटाएं
  12. वाह बेहतरीन रचना

    जवाब देंहटाएं
  13. प्रीत पैर बँधु बन पैजनियाँ

    थिरक बजूँ पी आँगन में।

    टोह अन्तहीन पारावार-सी

    व्याकुल पाखी की अंबर में।
    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत सुंदर अनीता !
    तुम्हारी कविताओं-गीतों में, प्रेम-मगन मीरा की तड़प और उसकी लगन दिखाई देती है.

    जवाब देंहटाएं
  15. एक-एक पन्ने पर वर्षों ठहरुँ

    मुँदे द्वार खोल माँडू माँडने।

    अल्हड़ मानस की टाँगू लड़ियाँ

    टूटे भावों को बैठूँ साँठने।
    वाह ! सुंदर छंद !

    जवाब देंहटाएं
  16. टोह अन्तहीन पारावार-सी
    व्याकुल पाखी की अंबर में।
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर सृजन

    जवाब देंहटाएं