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सोमवार, अप्रैल 18

उल्लास अधरों पर टाँगते हैं


सम्मोहन नश्वर नहीं प्रभात का

रचा-रचाया इन्द्रजाल है रात का

देखो!सहर सँवर आई चौखट पर 

उठो! पथ पर फूल बिछाते हैं

सूरज ढलने का बहाना छिपाते हैं।


जीवन ललाट पर भोर बिखेरते हैं 

टनियों से छनती धूप को हेरते हैं 

पाखी कलरव से झरते भाव  

प्रीत फल हृदय को पुगाते हैं

चलो!उजास के वृक्ष उगाते हैं।


अनमने से खोये-खोये न बैठो तुम

उफनते भाव-हिलोरों को न ऐंठो तुम 

पहर पखवाड़े में सिमटती ज़िंदगी के 

चलो! उल्लास अधरों पर टाँगते हैं 

यों निढाल न बनो स्वप्न हाँकते हैं।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

11 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर प्रस्तुति।

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  2. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,अनिता।

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 18 अप्रैल 2022 ) को 'पर्यावरण बचाइए, बचे रहेंगे आप' (चर्चा अंक 4404) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  4. चाँदनी बन चाँद अंजूरी से झरते हैं

    समय लहरों पर प्रीत-रस भरते हैं

    बादलों के भंवर से पर्वत गढ़ते हैं

    अनुपम कल्पना, प्रीत के रस में सनी कोमल भावनाओं का सुंदर चित्रण!

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  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  6. वाह सुंदर रचना उजास के वृक्ष.....

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  7. जीवन ललाट पर भोर बिखेरते हैं

    टनियों से छनती धूप को हेरते हैं

    पाखी कलरव से झरते भाव

    प्रीत फल हृदय को पुगाते हैं

    चलो!उजास के वृक्ष उगाते हैं।
    सकारात्मक भाव लिए बहुत ही सुन्दर लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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  8. बेनामी20/4/22, 6:18 am

    पाखी कलरव से झरते भाव
    प्रीत फल हृदय को पुगाते हैं
    चलो!उजास के वृक्ष उगाते हैं।
    अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।

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  9. अति सुन्दर सृजन।

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