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बुधवार, मई 17

योगी मन

साहित्य के गर्भ से जन्मा
श्वेत रुधिर कणिकाओं-सा 
प्रकृति का अनमोल अंश था 
दिनभर की थकान के बाद
आधी रात को आँखें मलते हुए 
सुनाता था लोरियाँ 
मेरे 'मैं' को सुलाने के लिए 
'अज्ञेय' तो कभी
'मुक्तिबोध' की कविताएँ पढ़ता 
एक-एक कविता को कई-कई बार पढ़ता 
मन जेष्ठ की तपती दुपहरी 
रोहिड़े के फूलों से भाव बीनता 
जादू की छड़ी था 
दुःख से नहीं प्रेम से उपजा  
दुःख में भी प्रेम ही लिखता
चर-अचर निस्वार्थ भाव से निहारता 
उसी भाव से स्वयं को देखना सिखाया
बहुत कठिन होता है
स्वयं को निरपेक्ष भाव से देखना
गहन मनोयोग के बाद उसी ने समझाया।


  @अनीता सैनी 'दीप्ति'

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 18 मई 2023 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 18 मई 2023 को 'तितलियों ने गीत गाये' (चर्चा अंक 4664) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    जवाब देंहटाएं
  3. गहन आत्ममंथन बहुत सुंदर सृजन प्रिय अनिता।

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