अज्ञात की ओर /अनीता सैनी
२०अक्टूबर २०२४
...
उस दिन
उस
दिशा के एक कोने ने
विचारों से भरे भारी-भरकम
नियति के मंगलसूत्र को उतारकर
संभावना की छोटी-सी अंगूठी पहनी थी।
तुम ठीक से देख नहीं पाए।
उस दिन वह
भीड़ में अकेली
और
बेड़ियों में आज़ाद थी।
मैं एक ब्लॉगर हूँ, स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हूँ, प्रकृति के निकट स्वयं को पाकर रचनाएँ लिखती हूँ, कविता भाव जगाएँ तो सार्थक है, अन्यथा कविता अपना मर्म तलाशती है |
मैं एक ब्लॉगर हूँ, स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हूँ, प्रकृति के निकट स्वयं को पाकर रचनाएँ लिखती हूँ, कविता भाव जगाएँ तो सार्थक है, अन्यथा कविता अपना मर्म तलाशती है |