Powered By Blogger
खिंच लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
खिंच लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, मई 14

पगडंडी


                                          
धूल-धूसरित मटमैली, 
  कृशकाय  असहाय पगडंडी |
  
 न  परखती  अपनों को, 
न  ग़ैरों   से  मुरझाती|

दर-ब-दर  सहती प्रकृति का  प्रकोप, 
भीनी-भीनी  महक से मन महकाती |

क़दमों को सुकूँ,  
जताती अपनेपन का एहसास |

तल्ख़  धूप  में, 
लुप्त हुई पगडंडी, 
रिश्ते   राह भटक गये |

  दिखा धरा को रूखापन, 
पगडंडी  दिलों  में खिंच  रही |

 थामे  अँगुली चलते थे कभी  साथ,   
वो  राह  बदल  रही |

निर्ममता  की  उपजी  घास, 
रिश्तों की चाल बदल रही |

 अपनों को राह दिखाती,  
वो डगर बदल  रही |

धरा से सिमट अब, 
 दिलों में खिंच  गयी, 
कृशकाय पगडंडी, 
जिस  पर दौड़ते रिश्ते, 
रिश्तों की चाल बदल रही  |

       - अनीता सैनी