Powered By Blogger

सोमवार, मार्च 18

दोहे (खड़ी बोली )

                                                   
देख  धरा  पर आवती,  प्रलय भरी-सी  छाँव |
अँधा  मानुष   है  बना ,  थके  हुए  है    पाँव ||


 द्वेष  बवंडर   उड़  रहा,  उगे   गधे    के   सींग |
होकर  भी  अभिमान  में , मनुज  मारता   डींग  ||


 देखा-देखी   बढ़  रही ,  बड़े   बेल  की    बात |
अपनों   को  ही  मिल  रही,  मनचाही  सौग़ात ||


आती  पश्चिम से हवा, मिटी   मनुज   की  आन  | 
दुनियाभर  को  सभ्यता,    पूरब   करता  दान ||


आँधी  भू  पर  उड़  रही,  टपक   रहा    है    ख़ून |
जीभ   बोलती    बोल   है,  कोरे   है   मज़मून ||



जोड़े  धन  की  गाठड़ी ,  काया  नोंचे    काक |
माया  मन  को   तोड़ती,  मानुष    खाये   ख़ाक ||

                        - अनीता सैनी 

42 टिप्‍पणियां:

  1. वर्त्तमान मानव पर अति उत्तम दोहे

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी प्रणाम
      होळी की हार्दिक शुभकामनायें
      सादर

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. सस्नेह आभार सखी
      होळी की हार्दिक शुभकामनायें
      सादर

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. सस्नेह आभार सखी
      होळी की हार्दिक शुभकामनायें
      सादर

      हटाएं
  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-03-2019) को "मन के मृदु उद्गार" (चर्चा अंक-3279) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय चर्चा में स्थान देने के लिए
      होली की हार्दिक शुभकामनायें
      सादर

      हटाएं
  5. जोड़े धन की गाठड़ी , नोंचे काया काक |
    माया मन को तोड़ती , मानष खाये ख़ाक ||
    बहुत खूब..........

    जवाब देंहटाएं
  6. उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय जोशी जी
      होली की हार्दिक शुभकामनायें
      सादर नमन

      हटाएं
  7. उत्तर
    1. सस्नेह आभार सखी
      होली की हार्दिक शुभकामनायें
      सादर

      हटाएं
  8. उत्तर
    1. जी सस्नेह आभार
      होळी की हार्दिक शुभकामनायें
      सादर

      हटाएं
  9. देख धरा पर आवती, प्रलय की सी छाँव |
    अंधा मानस है बना , टूटे सब के पाँव ||
    द्वेष बवंडर उड़ रहा, सिर पे उगा है सींग |
    क्रोध मन पर राज करे , मानवता बन भींग ||
    प्रिय अनिता आप दोहे की विलुप्त परम्परा को जीवित रखने की कोशिश कर उल्लेखनीय काम कर रही हैं | सस्नेह आभार और शुभकामनायें |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी उत्साहित प्रतिक्रिया का भी उतना ही सहयोग है,

      हटाएं
    2. सस्नेह आभार रेणु बहन
      आप को होली की हार्दिक शुभकामनायें
      सादर

      हटाएं
  10. उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय
      होली की हार्दिक शुभकामनायें
      सादर

      हटाएं
  11. बहुत सुंदर दोहे।
    नयी पोस्ट: शाहरुख खान मेरे गाँव आये थे।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय
      होली की हार्दिक शुभकामनायें
      सादर

      हटाएं
  12. राधे राधे बहुत सुंदर....
    Https://nkutkarsh.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय
      होली की हार्दिक शुभकामनायें
      सादर

      हटाएं
  13. वर्तमान को समेटे कुछ सुन्दर दोहे ... विविध विषयों को छूते हैं सब ...
    बहुत सुन्दर ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय दिगम्बर जी
      होली की हार्दिक शुभकामनायें
      सादर

      हटाएं
  14. वाह
    बहुत ही सुंदर दोहे
    बधाई

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय ज्योति जी
      आप को होली की हार्दिक शुभकामनायें
      सादर

      हटाएं
  15. सहृदय आभार आदरणीय
    होली की हार्दिक शुभकामनायें
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  16. वाह बहुत सुंदर सखी।

    जवाब देंहटाएं
  17. जोड़े धन की गाठड़ी , नोंचे काया काक
    माया मन को तोड़ती , मानुष खाये ख़ाक

    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  18. जोड़े धन की गाठड़ी , नोंचे काया काक
    माया मन को तोड़ती , मानुष खाये ख़ाक

    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  19. सुंदर और सार्थक दोहे। सादर।

    जवाब देंहटाएं