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शुक्रवार, मई 17

देव दूत पूनम की छाँव



मृगमरीचिका  के  चिर   पथ पर, 
 सृष्टि  ने   किया  भावों  का  शृंगार |

कलपा   सृष्टि  ने  सूने  मन  को, 
 उपजी  उर  में  करूणा  अपार, 
 ममता  मन  में  मचल  उठी, 
दिया  मानव  को   रूप  साकार, 
करुण -काव्य   बहा  अंतरमन में, 
सृजा   सृष्टि  ने  मानवावतार |

शब्द-शब्द  का  सार  पढ़ा, 
गढ़ा  मन  का  उद्गार,  
पुलिकत  मन  के तार हुए, 
 मिटा हृदय  का  भार |

उर  से  उर  को  जोड़ती, 
 उर  के  कोमल  तार |

मानस  चोला   प्रीत  का, 
स्नेह ,करूणा  का गढ़ा  मोहक  दाँव, 
पहन  चोला  निखरा  मानव, 
 लगे   देव-दूत  पूनम  की  छाँव |

गर्वित   हृदय   सृष्टि   का, 
 मानव  मन  में  सुन्दर  संस्कार |

मानवता  की  निर्मल  महक, 
महका  सृष्टि  का  घर-द्वार, 
एक सूत्र  में  बँधा  मानव, 
सजा  उर  पर  मुक्ता-हार  |

पथ-पथ  पर  प्रीत  खिली,  
जीवन-मर्म  महका, 
उर  के  उस  पार |

- अनीता सैनी 

38 टिप्‍पणियां:

  1. शब्द - शब्द का सार पढ़ा
    गढ़ा मन का उद्गार
    पुलिकत मन के तार हुये
    मिटा हृदय का भार

    अद्भुतं, अद्भुतं। शानदार भावाभिव्यक्ति मैम।

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    1. जी बहुत बहुत शुक्रिया आप का निश्छल जी
      सादर

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  2. बहुत सुंदर शब्दों का सरगम।

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    1. तहे दिल से आभार आदरणीय विश्वमोहन जी आप का
      सादर

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  3. आपकी रचना की जितनी तारीफ़ की जाय कम है

    जवाब देंहटाएं
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    1. प्रिय उर्मिला दी जी सस्नेह आभार आप का उत्साहवर्धन समीक्षा हेतु
      सादर

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  4. बेहतरीन रचना सखी 👌

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    1. प्रिय अनुराधा दी जी, तहे दिल से आभार आप का
      सादर

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  5. वाहः बहुत ही लाजवाब

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    1. आदरणीय लोकेश जी सहृदय आभार आप का
      सादर

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  6. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार मई 20, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. प्रिय यशोदा दी जी, सस्नेह आभार आप का पाँच लिंकों में मेरी रचना को स्थान देने के लिए
      सादर

      हटाएं
  7. वाह बहुत सुन्दर काव्य धारा सुंदर शब्दों का गहन ताना बाना ।

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    1. प्रिय कुसुम दी जी सस्नेह आभार आप का उत्साहवर्धन समीक्षा हेतु
      सादर

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  8. जीवन के कठिन सवालों पर विमर्श को आमंत्रित करती सुन्दर अभिव्यक्ति।

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    1. आदरणीय रविन्द्र जी तहे दिल से आभार आप का रचना का गहनता से अध्ययन करने और सुन्दर समीक्षा हेतु
      सादर

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  9. मानवता की निर्मल महक
    महका सृष्टि का घर - द्वार
    एक सूत्र में बँधा मानव
    सजा उर पर मुक्ता- हार
    सुंदर सार्थक सृजन प्रिय अनीता !!!!!!!! कोमल शब्दावली मनमोहक है | सस्नेह --

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    1. प्रिय रेणु दी जी आप के मन मोहक शब्द जिनका मैं समीक्षा अपने शब्दों में नहीं कर सकती, सस्नेह आभार आप का
      सादर

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  10. सुन्दर भावों से सजी रचना

    जवाब देंहटाएं
  11. मानवता की निर्मल महक
    महका सृष्टि का घर - द्वार
    एक सूत्र में बँधा मानव
    सजा उर पर मुक्ता- हार
    बहुत सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय ज्योति बहन तहे दिल से आभार आप का
      सादर

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  12. मानस चोला प्रीत का
    स्नेह ,करूणा का गढ़ा मोहक दाँव
    पहन चोला निखरा मनु
    लगे देव - दूत पूनम की छाँव...बहुत...बहुत...बहुत ही सुदर कविता अनीजा जी

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  13. बहुत सुन्दर सृजन अनीता जी ।

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  14. बहुत ही सुन्दर कविता |

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  15. शब्द - शब्द का सार पढ़ा
    गढ़ा मन का उद्गार
    पुलिकत मन के तार हुए
    मिटा हृदय का भार ...
    बेहतरीन लेखन । मन की अभिव्यक्ति सहज और सुग्राह्य तरीके से कैनवास पर उतर आई है। बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ

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    1. सहृदय आभार आदरणीय पुरुषोत्तम जी
      सादर

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  16. बेहतरीन सृजन.... सखी

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  17. सस्नेह आभार प्रिय सखी कामिनी जी
    सादर

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  18. वाह !प्रिय अनिता तुम्हारा ब्लॉग मानो हरीतिमा से आच्छादित उपवन में कोई सफ़ेद चादर बिछाकर आराम कर रहा हो | अत्यंत नयनाभिराम , मनभावन थीम लगायी है तुमने | हार्दिक स्नेह के साथ मेरी शुभकामनायें |

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    1. सस्नेह आभार दी
      आप ही के कहे अनुसार आप ही के लिए
      सादर

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  19. मानस चोला प्रीत का
    स्नेह ,करूणा का गढ़ा मोहक दाँव
    पहन चोला निखरा मनु
    लगे देव - दूत पूनम की छाँव
    वाह!!!!
    बहुत ही सुन्दर, सार्थक और लाजवाब सृजन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सस्नेह आभार प्रिय सुधा दी जी
      तहे दिल से आभार आप का सुन्दर समीक्षा के लिए
      सादर

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