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शुक्रवार, नवंबर 22

दर्द सांभर झील का



साल-दर-साल हर्षित हृदय लिये  
आते हो तुम लाखों की तादाद में 
इस बार हुआ क्या ऐसा 
प्रवासी पक्षी तुम्हारी जान को 

शीत ऋतु में आकर मान मेरा बढ़ाते हो 
खिल उठाती है क़ुदरत जब चहचाहट तुम्हारी होती है 
ख़ुशी से हृदय मेरा फूला नहीं समाता है 
जब जल में मेरे आहट तुम्हारी होती है 

गर्वित हो उठती हूँ देखो !
तुम्हारे इस सम्मान पर 
अतिथि बन तुम आते हो
 आँगन में मेरे खिलती मीठी मुस्कान है 

नमक-सा नीर है मुठ्ठी में मेरे 
फिर भी तुम्हें  खींच ले आती हूँ 
 स्नेह कहूँ तुम्हारा इस मिट्टी से या 
सौभाग्य मेरा तुम्हें बुलाता है 

अतिथि सत्कार में थी न कोई कमी 
पलकें बिछाये बैठी थी 
आँचल में समेटे दाना-पानी 
पल-पल बाट तुम्हारी जोहती हूँ 

मिलना-बिछड़ना सिलसिला है यही 
प्रति वर्ष का 
तुम लौटोगे इसी उम्मीद में 
साँसों में आशाएँ सजोये रहती हूँ 
आगमन से तुम्हारे 

बच्चे भी मेरे 
  खाते पेटभर खाना है 
सैलानी जो इसी ऋतु में  
तुम्हें देखने आते हैं 

थक गये थे बटोही राह में 
सफ़र की लम्बी थकान से 
खाना नहीं मिला राह में 
राहगीर तुम्हें धरा की ठण्डी छाँव में 

रोग लगा था दिल में दयनीय 
दर्दभरे ये  आँसू  छलके कैसे  
 जानूँ  कैसे राज़ यह गहरा 
लम्बी ख़ामोशी का दिया क्यों पहरा 
आते ही आँचल में मेरे 

टीस उठी उर  में भारी 
ज़हर बता रहे जन जल को मेरे 
पलकों के पानी-सी लवणता है मुझमें
 ज़हर का दाग़ अब लगा है गहरा 
प्रवासी परिंदे  क्यों सोये  तुम चिरनिद्रा में ? 
डूब गयी मैं आत्मग्लानि और गहरी  कुंठा में  |

©अनीता सैनी 

16 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!!सखी ,सांभर झील का दर्द समेट लिया है आपने अपने शब्दों में ।

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    1. सादर नमन आदरणीया शुभा दीदी जी रचना का सार समेटे आपकी सुन्दर समीक्षा हेतु.
      सादर

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  2. सांभर झील के करूण भावों का मार्मिक अंकन । व्यथित हृदय का मर्मस्पर्शी वर्णन करती सुन्दर रचना अनीता जी ।

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    1. सादर आभार आदरणीया मीना दीदी जी आपकी सुन्दर काव्यात्मक समीक्षा हेतु.आप स्नेह और सानिध्य हमेशा बना रहे.
      सादर

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  3. प्रकृति का मानवीकरण करती रचना. मार्मिकता से परिपूर्ण सृजन.निरीह पक्षियों की अचानक मौत पर एक झील का क्षुब्ध होकर आत्मग्लानि से भरना पाठक की संवेदना को टटोलता है.
    बधाई एवं शुभकामनाएँ एक प्राकृतिक हादसे पर संवेदनशील सृजन हेतु.

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    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय रवीन्द्र जी सर सुन्दर एवं रचना का मर्म समेटे सारगर्भित समीक्षा हेतु. आपका नव रचनाकारों को प्रोत्साहन का रव्या आपको सम्पूर्ण ब्लॉग में आपकी अलग पहचान दिलाता है आप का मार्गदर्शन हमेशा यों ही मिलता रहे यही उम्मीद रखती हूँ.
      सादर

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  4. प्रति वर्ष हर्षित हृदय लीये 
    आते हो तुम 
    लाखों की तादात में 
    इस बार हुआ क्या ऐसा 
    प्रवासी पक्षी तुम्हारी जान को ...

    अनीता बहन, साइबेरियन पक्षियों की अकाल मृत्यु पर आपकी भूमिका बहुत कुछ कह गयी है।
    सत्य तो यह है कि प्रकृति हम प्राणियों की रक्षा के लिए हर प्रकार का मूल्य चुकाने को तैयार रहती है, परंतु प्रतिउत्तर में हम मनुष्य उसे क्या देते हैं ? जिसकी पाठशाला में हम प्रशिक्षित होते हैं, उसे ही नष्ट करने को आतुर हैं।
    कब चेतेगा आधुनिक युग का मानव... ?
    *****
    पल-पल बाट तुम्हारी जोहती हूँ 
    मिलना-बिछड़ना सिलसिला है यही 
    प्रति वर्ष का 
    तुम लौटोगे इसी उम्मीद में ...

    जीवन में जब तक यह उम्मीद कायम रहेगी मानव हर वेदना को सहने में समर्थ रहेगा..
    ****
    बहुत ही सुंदर ,मार्मिक एवं समसामयिक सृजन है। मानवीय संवेदना को झकझोरने वाला... हमारी सरकार को इन विदेशी मेहमानों की सुरक्षा के प्रति कुछ करना होगा ..
    परंतु हमारे विंध्य क्षेत्र में अवैध तरीके से इनका शिकार लोग करते हैं..।
    प्रणाम ।

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    1. सादर आभार आदरणीय शशि भाई रचना पर विस्तृत व्याख्यात्मक टिप्पणी के विषय सम्बन्धी अन्य ज़रूरी आयाम जोड़ने और मनोबल बढ़ाने के लिये. आपका समर्थन एवं सहयोग यों ही मिलता रहे.
      सादर

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  5. चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देस हुआ बेदाना !

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    1. बहुत मार्मिक गीत के बोल से बहुत कुछ कह दिया है आपने आदरणीय सर एक विकट परिस्थिति पर. व्यंग्य भी है सलाह भी.
      सादर आभार आदरणीय सर.
      सादर प्रणाम.

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  6. राहगीर तुम्हें धरा की ठण्डी छाँव में
    रोग लगा था दिल में दयनीय
    दर्द भरे यह आँशु छलके क्यों
    कैसे जानूँ राज़ यह गहरा
    लम्बी ख़ामोशी का दिया क्यों पहरा
    आते ही आँचल में मेरे
    टीस उठी सीने में भारी बेहतरीन प्रस्तुति सखी

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    1. सस्नेह आभार बहना सुन्दर समीक्षा हेतु.
      सादर

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  7. सुन्दर प्रस्तुति

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  8. झील का दर्द नहीं ये समाज को चेतावनी है ... समय एक सा नहीं रहना ... मुसाफिर लौटना बंद न कर दें ... अभी संभालना जरूरी है ...

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    1. सच कहा आपने सर समाज की इस विकट समस्या का हल समाज को ही निकालना होगा.
      सादर आभार आदरणीय.

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