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बुधवार, नवंबर 6

जनाब कह रहे हैं ख़ाकी और काला-कोट पगला गये हैं


जनाब कह रहे हैं 
 ख़ाकी और काला-कोट पगला गये हैं  
और तो और सड़क पर आ गये हैं  
 धाक जमा रहे थे हम इन पर 
सफ़ेद पोशाक  पहन 
पितृ देव का रुतबा दिखा 
भविष्यवाणी कर रहे थे 
शब्दों का प्रभाव क्या होता है 
ख़ाकी और काले-कोट को 
अँगुली पर नचा रहे थे 
नासपीटे धरने पर बैठ गये 
पहले काला-कोट अब यह ख़ाकी  
परिवार सहित सड़क पर जाम लगाये बैठे हैं  
बुद्धि भिनभिना रही है हमारी 
ये  होश  में  कैसे आ रहे हैं ? 
जागरुकता का यह क्या झमेला है ? 
ख़ामोश करो इन सभी को 
कोई नई सुरँग खोदो  
नया उजला चोगा बनवाओ 
नया अवतार गढ़ो 
 एक बार फिर उजाले का 
देवता और मसीहा मुझे कहो 
सफ़ेद पोशाक के पीछे 
मेरी हर करतूत छिपाओ
हुक्म की अगुवाही नहीं हुई 
बौखला गये जनाब
वहम की पट्टी खुलती है और 
मंच पर पर्दा गिरता है
क़दम डगमगाते हैं 
साँसें गर्म हो
 शिथिल पड़ जाती हैं 
जनाब यह 
२०२० की पैदाइश हैं  
एक बच्चा कान में फुसफुसाता है !

©अनीता सैनी 

32 टिप्‍पणियां:

  1. समसामयिक रचना है, समझ में नहींं आता कि कौन किसे आईना दिखाए । हमाम में सभी नंगे हैं कहाँ गया अपने गांधीबाबा का वह खादी, अब तो काले वस्त्र में वह भी रंगा- सा है।
    हालात हम मनुष्यों की क्या होने वाली है, इसकी भविष्यवाणी अब तो एक बच्चा भी कर रहा है।
    सादर।

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    1. बहुत-बहुत आभार आपका आदरणीय शशि भाई रचना पर अपनी पसंद ज़ाहिर करने और मनोबल बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिये.

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  2. समसामयिक घटनाक्रम पर गहन कटाक्ष । अति सुन्दर सृजन । जो गंभीर विषय पर सोचने को प्रेरित करने के साथ स्मित मुस्कुराहट
    भी देता है ।

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    1. सादर आभार आदरणीया मीना दीदी रचना की सराहना और उत्साहवर्धन करती मोहक प्रतिक्रिया के लिये |
      सादर

      हटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (07-11-2019) को      "राह बहुत विकराल"   (चर्चा अंक- 3512)    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. बहुत सारा आभार आदरणीय सर मेरी रचना को चर्चा मंच की चर्चा में शामिल करने के लिये |
      सादर

      हटाएं
  4. व्यवस्था में जब घुन लग गया हो तब ऐसी धारणाओं का उभरकर सामने आना स्वाभाविक है।
    दिल्ली में पुलिस और वकीलों का संघर्ष सुराज की अवधारणा पर सवाल खड़े करता नज़र आया।
    आपकी रचना ने देश के वर्तमान माहौल का शानदार व्यंगात्मक चित्रण किया है।
    बधाई एवं शुभकामनाएं।
    लिखते रहिए।

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    1. सादर आभार आदरणीय सर मेरी रचना का मर्म स्पष्ट करती विस्तृत टिप्पणी के लिये|आपकी टिप्पणियाँ सदैव मेरा उत्साहवर्धन करती हैं |
      सादर

      हटाएं
  5. रक्षा करने वाला और न्याय दिलाने वाला ही जब आपा खो देता है तो आम आदमी तो महफूज हो ही नहीं सकता


    सुन्दर रचना

    यहां पधारें और बताओ क्या हो रहा है 

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    1. बहुत सारा आभार अश्विनी जी रचना पर सारगर्भित टिप्पणी के लिये. आपका ब्लॉग भी ज़रूर देखूँगी.
      सादर

      हटाएं
  6. नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 07 नवंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सहृदय आभार आदरणीय पांच लिंकों के आनंद पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु.
      सादर

      हटाएं
  7. समसामयिक सुंदर सृजन प्रिय अनीता| व्यवस्थाओं के प्रपंच और बेचैन मानवता की सार्थक अभिव्यक्ति देती रचना के शुभकामनाएं और बधाई |

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    1. सादर आभार आदरणीया रेणु दीदी मेरी रचना की सार्थक समीक्षा के लिये. आपकी प्रतिक्रिया मुझे ऊर्जा से भरती है और बेहतर लिखने को प्रेरित करती हैं.
      सादर

      हटाएं
  8. समसामयिक सुंदर सृजन प्रिय अनीता| व्यवस्थाओं के प्रपंच और बेचैन मानवता की सार्थक अभिव्यक्ति देती रचना के लिए शुभकामनाएं और बधाई |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया रेणु दीदी मेरी रचना की सार्थक समीक्षा के लिये. आपकी प्रतिक्रिया मुझे ऊर्जा से भरती है और बेहतर लिखने को प्रेरित करती हैं.
      सादर

      हटाएं
  9. श्वेत, खाकी,और काला कोट एक जाल बुनकर बैठे थे
    किसी ने मोटा हाथ मारा तो किसी को कम हाथ लगा बस आपस की लड़ाई है। इस तरह जाल फटने लगा है। जनता का जागरूक सिम्बल भी बहुत अच्छा है।
    शानदार रचना।

    मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है👉👉 जागृत आँख 

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    1. सादर आभार रोहितास जी मेरी रचना पर विस्तृत व्याख्यात्मक टिप्पणी के लिये. आपका ब्लॉग भी अवश्य पढ़ूंगी.
      सादर

      हटाएं
  10. जबर्दस्त व्यंग्य !!!

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    1. सादर आभार आदरणीया मीना दीदी.आपकी समीक्षा मुझे सदैव प्रभावित करती है.
      सादर

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  11. सार्थक अभिव्यक्ति.. बधाई

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    1. सादर आभार आदरणीया पम्मी जी मनमोहक प्रतिक्रिया के साथ मनोबल बढ़ाने के लिये.
      सादर

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  12. करारा व्यंग्य ,शानदार अभिव्यक्ति अनीता जी

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    1. सादर आभार आदरणीया कामिनी जी रचना पर सुंदर प्रतिक्रिया के ज़रिये उत्साहवर्धन के लिये.
      सादर

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  13. वाह!!प्रिय सखी , बहुत सार्थक व सटीक !

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    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया शुभाजी मोहक टिप्पणी के साथ रचना का मान बढ़ाने के लिये. आपका साथ यों ही बना रहे.
      सादर

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  14. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर समसामयिक व्यंग्यात्मक रचना....
    फ़ेद पोशाक के पीछे
    मेरी हर करतूत छिपाओ
    हुक्म की अगुवाही नहीं हुई
    बौखला गये जनाब
    बहुत सटीक...।

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार आदरणीया सुधा दीदी जी रचना पर सार्थक और सागर्भित समीक्षा हेतु.
      सादर

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  15. सटीक कटाक्ष करती आपकी यह रचना अत्यंत ही सराहनीय है। शायद इन नकाबपोशो को कुछ समझ में आ जाए!
    बहुत-बहुत बधाई ।

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    उत्तर
    1. रचना का मर्म समझने के लिये बहुत बहुत आभार आदरणीय.आपका सानिध्य और स्नेह यूँ ही बना रहे.
      सादर

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  16. बहुत सुंदर रचना सखी

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    1. सस्नेह आभार बहना सुन्दर समीक्षा हेतु.
      सादर

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