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मंगलवार, जनवरी 21

आस है अभी भी


लड़खड़ाते हौसलों में हिम्मत, 
दूब-सा दक्ष धैर्य धरा पर है अभी भी, 
कोहरे में डूबी दरकती दिशाएँ,  
नयनों में उजले स्वप्न सजोते हैं अभी भी, 
रक्त सने बोल बिखेरते हैं  हृदय पर, 
जीने की ललक तिलमिलाती है अभी भी । 

कश्मकश की कश्ती में सवार,  
तमन्नाओं की अनंत कतारें हैं अभी भी,  
बिखरी गुलाबी आँचल में, 
 सुंदर सुमन अलसाई पाँखें हैं अभी भी, 
सुरमई सिंदूरी साँझ में, 
विहग-वृन्द को मिलन की चाह शेष है अभी भी । 

घात-प्रतिघात शीर्ष पर, 
इंसानीयत दिलों में धड़कती है अभी भी,  
नयनों के झरते खारे पानी में , 
दर्द को सुकून मिलता है अभी भी,  
उम्मीदों के हसीं चमन में फूलों को 
 बहार आने की अथक आस है अभी भी । 
© अनीता सैनी 

20 टिप्‍पणियां:

  1. लड़खड़ाते हौसलों में हिम्मत, 
    दूब-सा दक्ष धैर्य धरा पर है अभी भी, 
    कोहरे में डूबी दिशाएँ दरकती,  
    नयनों में उजले स्वप्न सजोते हैं अभी भी, 
    रक्त सने बोल बिखेरते हृदय पर, 
    जीने की ललक तिलमिलाती है अभी भी । ....मुक़दर को न आजमां सितम ज़माने के है अभी भी.. बहुत सुन्दर लिखती रहो..

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    1. सुन्दर समीक्षा हेतु तहे दिल से आभार आदरणीय
      सादर

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (22-01-2020) को   "देश मेरा जान मेरी"   (चर्चा अंक - 3588)    पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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    1. सहृदय आभार आदरणीय चर्चामंच पर मुझे स्थान देने हेतु.
      सादर

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  3. हिम्मत और हौसले की बानगी को खूबसूरती से प्रदर्शित किया आपने अपनी इस रचना में.. जब तक इंसान के अंदर हिम्मत और विश्वास की उम्मीद जगती रहेगी वह हर मुसीबत से बाहर उबर आएगा...
    आजकल के युवाओं को इसी तरह के हौसलों से लबरेज कविताएं पढ़नी चाहिए जो किसी कारणवश मानसिक विकलांगता के शिकार हो रहे हैं

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    1. रचना का मर्म स्पष्ट करती सुन्दर समीक्षा हेतु तहे दिल से आभार प्रिय अनु.
      सादर

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  4. वाह!!प्रिय सखी , उम्मीद जगाती ,हौसला बढाती ....!!👌

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी जी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

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  5. वाहहहहह बेहतरीन रचना

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    1. सादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

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  6. उम्मीदों के हसीं चमन में फूलों को
    बहार आने की अथक आस है अभी भी

    बहुत खूब..... अनीता जी

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    1. सादर आभार आदरणीया कामिनी दीदी जी सुन्दर समीक्षा हेतु.
      सादर

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  7. दूब सा दक्ष धैर्य धरा पर है अभी भी
    और
    बहार आने की अथक आस है अभी भी.

    ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं.
    अथक आस...
    अनीता जी, धन्यवाद.
    आस फिर बंध गई.

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  8. उम्मीदों के हसीं चमन में फूलों को
    बहार आने की अथक आस है अभी भी

    बहुत खूब.

    वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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