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बुधवार, जनवरी 8

आदमी इंसान बनना चाहता



अदब से आदमी,आदमी होने का ओहदा, 
आदमीयत की अदायगी आदमी से  करता,  
आदमी इंसानियत का लबादा पहन,  
स्वार्थ के अंगोछे में लिपटा इंसान बनना चाहता। 

सूर्य के तेज़-सी आभा मुख मंडल पर सजा,  

ज्ञान की धारा का प्रारब्धकर्ता कहलाता,  
सृष्टि का लाडला सृष्टि को तबाह करने को उतारु,  
बुद्धि की समझ से आधुनिकता का पाठ पढ़ाता। 

जीवन मूल्यों की नई पहचान गढ़ता, 
स्वाभिमान के रुप में हथियार अहंकार का रखता,   
 रोबोट बनने की चाह में स्वयं को हैवान बन गँवाता,  
दुनिया को तबाही का भयावह मंज़र दिखाना चाहता। 

 ©अनीता सैनी 


20 टिप्‍पणियां:

  1. आदमी इंसानियत का लबादा पहन,
    स्वार्थ के अंगोछे में लिपटा इंसान बनना चाहता |

    सूर्य के तेज़-सी आभा मुख मंडल पर सजा,
    ज्ञान की धारा का प्रारब्धकर्ता कहलाता,
    सृष्टि का लाडला सृष्टि को तबाह करने को उतारु

    सुन्दर रचना जी |

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    1. सस्नेह आभार आदरणीय इस अपार स्नेह और सानिध्य हेतु.

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  2. वाह बहुत खूब , एक आधुनिक कविता लिखी आपने...
    सही इशारा किया आपने पूरी दुनिया बारूद के गोले पर खड़ी है छोटी सी चिंगारी बहुत बड़ा विस्फोट कर सकती है आज इंसान दूसरे इंसान से नफरत गुस्सा यहां तक कि जितने भी अत्याचार वह दूसरों पर कर सकता है इस तरह की मानसिकता लिए जी रहा है बहुत ही गहरे अर्थ लिए हैं आपकी कविता ने

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    1. सस्नेह आभार प्रिय अनु सुन्दर और सतगर्भित समीक्षा हेतु.
      सादर

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 08 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी मेरी रचना का मान बढ़ाने हेतु.
      सादर

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  4. वाह!!प्रिय सखी ,बहुत ही गहरा अर्थ लिए हुए ,खूबसूरत सृजन !

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    1. सस्नेह आभार प्रिय सखी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

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  5. अभी उम्मीद बाक़ी है कि आदमी में इंसानियत के मूल्य विकसित हो सकते हैं.नकारात्मक क्रोध के बाद पश्चाताप के बीज प्रस्फुटित होते हैं.
    घृणा की लिजलिजी ज़मीन पर आख़िर कब तक चलेगा आदमी?

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    1. सहृदय आभार आदरणीय सुन्दर और सारगर्भित समीक्षा हेतु.
      हमेशा की तरह मार्गदर्शन करती आपकी समीक्षा. आपका आशीर्वाद यों ही बना रहे.
      प्रणाम
      सादर

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  6. बेहतरीन रचना अनिताजी। प्रथम दो पंक्तियाँ ही बहुत कुछ कह गईं।

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    1. सादर आभार आदरणीय दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

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  7. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 9.1.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3575 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी ।

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

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    1. सहृदय आभार आदरणीय मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु.
      सादर

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  8. सटीक समय का स्वरूप ,
    आदमी में आदमियत रही अब कम है,
    आदमी ही आदमी है इंसान अब कम है।
    बहुत सुंदर सृजन।

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी सुन्दर और सारगर्भित समीक्षा हेतु.
      सादर स्नेह

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  9. "आदमी इंसानियत का लबादा पहन,
    स्वार्थ के अंगोछे में लिपटा इंसान बनना चाहता।"

    "सृष्टि का लाडला सृष्टि को तबाह करने को उतारु"

    "स्वाभिमान के रुप में हथियार अहंकार का रखता"

    अद्भूत! अद्भूत! अद्भूत!
    वाह! वाकई मैं लाजवाब हूँ...
    बेहतरीन पंक्तियों का गुच्छा।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सुन्दर और सारगर्भित समीक्षा हेतु.
      नि:शब्द हूँ आपकी मोहक समीक्षा पर.
      सादर आभार

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  10. उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

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