Powered By Blogger

शनिवार, अप्रैल 25

झील किनारे



 निर्मल शीतल जल झील का,  
ठिठुरकर सुनाता करुण कथा, 
  झरोखों से झाँकती परछाइयाँ, 
पलकों में भरती दीप-सी व्यथा। 

अकाल के दौर में बनाया महल,  
नींव में दबाए पेट की भूख  
 शौर्यगाथा अश्वमेध-यज्ञ की सुन,   
आतुर राजा संग परिवेश हर्षाया। 

वैराग्य में सिमटी सजी मनोदशा,  
एकांत में सुनाती सरोवर संवाद 
तलहटी से उठती करुण पुकार 
अंतस से करती वाद-विवाद । 

झील किनारे प्रतीक्षारत परछाई, 
  किरदार गढ़ने को व्याकुल हर पल,  
सौंदर्यबोध दर्शाती ख़ामोश दीवारें, 
राजसी भव्यता में डूबा जलमहल । 

©अनीता सैनी 'दीप्ति'

14 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-04-2020) को शब्द-सृजन-18 'किनारा' (चर्चा अंक-3683) पर भी होगी।

    --

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु.
      सादर

      हटाएं
  2. झील किनारे प्रतीक्षारत परछाई,
    किरदार गढ़ने को व्याकुल हर पल,
    सौंदर्यबोध दर्शाती ख़ामोश दीवारें,
    राजसी भव्यता में डूबा जलमहल ।

    सुंदर अभिव्यक्ति ,अनीता जी

    जवाब देंहटाएं
  3. अकाल के दौर में बनाया महल,
    नींव में दबाए पेट भूख की
    अद्भुत कल्पनाशक्ति और शानदार शब्दसंयोजन
    वाह!!!
    लाजवाब सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

      हटाएं
  4. बहुत सुंदर! जलमहल के निर्माण के कई तथ्य उजागर करती ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर सुंदर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया दीदी सारगर्भित समीक्षा हेतु.
      सादर

      हटाएं
  5. "अकाल के दौर में बनाया महल,
    नींव में दबाए पेट की भूख
    शौर्यगाथा अश्वमेध-यज्ञ की सुन,
    आतुर राजा संग परिवेश हर्षाया।"
    ये पंक्तियाँ आज भी प्रासंगिक हैं। अतीत में इतिहास में दर्ज है कि अकाल के वक़्त सत्ता संरचना कुछ ऐसे कार्यक्रम अपने राज्य में आयोजित करती थी कि लोगों से बहुउद्देशीय कार्य भी करवा लिया जाय और वे भूखे भी न रहें अतः कार्य के बदले भोजन उपलब्ध कराया जाय।
    बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम से निर्जीव महलों की दीवारों से अतीत की ध्वनियाँ जीवंत करने का सफल प्रयास है आपकी अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर सुंदर सारगर्भित समीक्षा हेतु.
      स्नेह आशीर्वाद बनाये रखे.
      सादर

      हटाएं
  6. बहुत ही बढ़िया लिखा आपने ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

      हटाएं