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रविवार, मई 10

माँ...कभी धूप कभी छांव



माँ...
 उजली धूप बनी जीवन में,
कभी बनी शीतल छांव, 
पथिक की मंज़िल बनी,
कभी पैरों की बनी ठांव 
माँ... 
भूखे की रोटी बन सहलाती,
 बेघर को मिला गंतव्य गांव, 
माँ तुम हृदय में रहती हो मेरे,
हो प्रेरक प्रेरणा की ठंडी छांव
माँ... 
संवेदना बन हृदय में समायी 
मिला वात्सल्य रुप निराकार,
हो सतरंगी फूलों की बहार, 
 अंतरमन में करुणा का भंडार 
माँ... 
नैनों से लुढ़कते चिर-परिचित,
मन के मनकों की हो बौछार,
तिमिर में हो प्रज्ज्वलित दीप,
माँ तुम सांसों का हो उद्गार
माँ..
तुम हो साहस की सौगात,
 चिरजीवन का साया बनी हर बार 
तुम्हारे अंतस में छिपी हूँ मैं,
 बन करुणा का कोमल किरदार।

© अनीता सैनी 'दीप्ति' 

26 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (04 मई 2020) को 'ममता की मूरत माता' (चर्चा अंक-3698) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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    1. सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु.
      सादर

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    2. बेनामी18/11/23, 7:45 am

      लाजवाब

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  2. बहुत सुंदर रचना ।

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    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिकिया हेतु.
      सादर

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  3. उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर सुंदर प्रतिकिया हेतु.
      सादर

      हटाएं
  4. माँ...
    उजली धूप बनी जीवन में,
    कभी बनी शीतल छांव,
    पथिक की मंज़िल बनी,
    कभी पैरों की बनी ठांव...
    माँ की ममता का पूरा सार समाया है रचना में । बहुत सुन्दर सृजन .

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया दीदी मनोबल बढ़ाती सुंदर समीक्षा हेतु.
      सादर

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  5. तुम हो साहस की सौगात,
    चिरजीवन का साया बनी हर बार
    तुम्हारे अंतस में छिपी हूँ मैं,
    बन करुणा का कोमल किरदार।

    माँ की ममता का बेहद सुंदर चित्रण अनीता जी

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी सुंदर समीक्षा हेतु.
      सादर

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  6. माँ हजी तो सब कुछ है ... उसी से हम हैं ... वो हमसे बाहर नहीं ...

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    1. सादर आभार आदरणीय सर मार्गदर्शन करती समीक्षा हेतु.
      सादर

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  7. आदरणीया अनीता सैनी जी, माँ के लिए भावनाओं को अभिव्यक्ति देती सुन्दर रचना। ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं :
    नैनों से लुढ़कते चिर-परिचित,
    मन के मनकों की हो बौछार,
    तिमिर में हो प्रज्ज्वलित दीप,
    माँ तुम सांसों का हो उद्गार। --ब्रजेन्द्र नाथ

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    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिकिया हेतु.
      आशीर्वाद बनाये रखे.
      सादर

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  8. बहुत सुंदर रचना
    उजली धूप बानी जीवन मे
    वाह

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी आदरणीया दीदी मनोबल बढ़ाती सुंदर समीक्षा हेतु.
      सादर

      हटाएं
  9. तुम हो साहस की सौगात,
    चिरजीवन का साया बनी हर बार
    तुम्हारे अंतस में छिपी हूँ मैं,
    बन करुणा का कोमल किरदार।
    वाह!अनीता जी बहुत ही सुन्दर उद्गार माँ के लिए मातृदिवस पर .....
    अनंत शुभकामनाएं।

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी सारगर्भित समीक्षा हेतु.
      सादर

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  10. उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
      सादर

      हटाएं
  11. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 20 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  12. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (27-2-22) को एहसास के गुँचे' "(चर्चा अंक 4354)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  13. नैनों से लुढ़कते चिर-परिचित,
    मन के मनकों की हो बौछार,
    तिमिर में हो प्रज्ज्वलित दीप,
    माँ तुम सांसों का हो उद्गार।
    माँ..
    अद्भुत सच्चाई ।
    अंतर तक उतरता सृजन।

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