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सोमवार, जुलाई 6

सयानी सियासत


सयानी सियासत हद से निकल 
नगें पाँव दौड़ रही है सरहद की ओर।  
पैरों में बँधे हैं गुमान के घुँघुरु
खनक में मुग्ध हैं दिशाओं के छोर।  
नशा-सा छाया है नाम के उसका
परिवेश में गूँजता है शह-मात का शोर।   

मोहनी सूरत का मुखौटा,मंशा में है गांभीर्य 
शीश पर लालच के पिटारे का है भार।  
वाकचातुर्यता या शब्दों में मिश्री का है घोल 
ठगती मानव-मूल्य,करती क्लेश का भोर। 
भाषा,धर्म के नाम पर दिमाग़ से खेलती 
ज़हर भविष्य के पथ पर गहरा घोलती। 
ख़ामोशी में सिमटी क्यों मानवता है मौन ?
किसलय खिली हैं उपवन में रक्षा करेगा कौन ?

सफ़ेदपोशी के साथ आँख मिचोली के खेल में 
सेवानिवृत्त सैनिकों को तृष्णा में है उतारा।  
सरहद से थके-हारों  की धूमिल करती छवि 
क्लेश की कालिख पोतते वर्दी पर यह रवि। 
बिकाऊ मीडिया को कह हुड़दंग है मचाती 
सियासत के गलियारे से सीमा पर जा बैठी। 
सेना के सीने पर सियासती ज़हर का बखेरा 
सैनिकों के कफ़न पर कैसा नक़्शा है उकेरा?

©अनीता सैनी 'दीप्ति'

22 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 06 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार आदरणीय यशोदा दीदी सांध्य दैनिक में स्थान देने हेतु .
      सादर

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  2. वर्तमान हालात पर रची गई सुन्दर प्रस्तुति।

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    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु .
      सादर

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  3. सियासत ही जहर घोलती है देश के माहौल में वर्तमान राजनीति पर सटीक टिप्पणी

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    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती सुंदर प्रतिक्रिया हेतु.
      सादर

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  4. उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर आपका ब्लॉग पर आना ही मेरा सौभाग्य है.सादर आभार मनोबल बढ़ाने हेतु .

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  5. वर्तमान परिपेक्ष्य पर सटीक सृजनात्मकता ।

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    1. सादर आभार आदरणीय मीना दीदी मनोबल बढ़ाने हेतु .आपका स्नेह आशीर्वाद ऊर्जा है मेरी .

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  6. सटीक , यथार्थ, सामायिक हालातों पर गहरा क्षोभ प्रकट करती अप्रतिम रचना।
    कोड़े से लगते शब्द काश मोटी चमड़ी वालों पर असर कर पाते।

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    1. सादर आभार आदरणीय कुसुम दीदी इस प्रस्तुति में मेरा साथ देने हेतु.इसी तरह स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
      तहे दिल से आभार साथ देने हेतु .

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  7. मुखौटाधारियों की एक ही नीति होती है
    आत्ममुग्धता में अंधे हो दौड़ने वालों को पाँव के नीचे कौन कुचल रहा इसका भान कहाँ रहता है अनु।
    समसामयिक परिदृश्यों पर सुंदर बिंबों से अलंकृत
    बेहद धारदार सृजन अनु।
    सस्नेह।

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    1. सादर आभार आदरणीय श्वेता दीदी इस प्रस्तुति में साथ देने हेतु.आपकी सहमति से मनोबल में वृद्धि के साथ एक सुकून मिला. दिल को छू गए आपके यह विचार (आत्ममुग्धता में अंधे हो दौड़ने वालों को पाँव के नीचे कौन कुचल रहा इसका भान कहाँ रहता है अनु।)
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.

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  8. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (08-07-2020) को     "सयानी सियासत"     (चर्चा अंक-3756)     पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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    1. सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु.
      सादर

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  9. कोई सियासत नहीं होनी चाहिए ... सही कह रही है आपकी रचना ...
    सनिकों का लहू व्यर्थ नहीं जाना चाहिए ... सीमाओं के साथ सियासत का खिलवाड़ राष्ट्र नष्ट करता है ...

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    1. आभारी हूँ आदरणीय सर.यथार्थ चिंतन को प्रोत्साहन देने हेतु.विषय कड़वा है परंतु विचारणीय है.सफ़ेदपाशी अपनी महत्वकांक्षा कुचल रही है भविष्य.मनोबल बढ़ाने हेतु सादर आभार
      सादर

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  10. सेना के सीने पर सियासती ज़हर का बखेरा
    सैनिकों के कफ़न पर कैसा नक़्शा है उकेरा?
    कम से कम सैनिक के बलिदान का मान तो रखें ये सियासी लोग,अंतर्मन के क्रोध और पीड़ा को शब्दों में पिरो दिया हैं आपने अनीता जी,हृदयस्पर्शी सृजन

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    1. सादर आभार कामिनी दीदी क्रोध नहीं है.क्षोभ है एक विचार है एक चिंतन है.यही कहूँगी अंतस की पीड़ा है.
      तहे दिल से आभार मनोबल बढ़ाने हेतु .
      सादर

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  11. मोहनी सूरत का मुखौटा,मंशा में है गांभीर्य
    शीश पर लालच के पिटारे का है भार।
    वाकचातुर्यता या शब्दों में मिश्री का है घोल
    ठगती मानव-मूल्य,करती क्लेश का भोर।
    भाषा,धर्म के नाम पर दिमाग़ से खेलती
    ज़हर भविष्य के पथ पर गहरा घोलती।
    ख़ामोशी में सिमटी क्यों मानवता है मौन ?
    किसलय खिली हैं उपवन में रक्षा करेगा कौन
    कितनी गहरी बात कही गई है ,स्वार्थ मे इंसानियत को अक्सर नजर अंदाज कर दिया जाता है ,तभी भरोसा टूटने लगता है ,मार्मिक ,सटीक, यथार्थ को दर्शाती हुई बेहतरीन रचना है।

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    1. सुप्रभात आदरणीय ज्योति दीदी.मन हर्षित हुआ आपको ब्लॉग पर देखकर.आपकी सारगर्भित समीक्षा ऊर्जा है मेरी.
      हमेशा सकारात्मक हूँ परंतु कभी-कभी मन विचलित हो जाता है बागडोर कर्ताओ से...समझ और समझाइश दंग रह जाते हैं.क़लम से फुट पड़ती ऐसी ही एक कृति.मनोबल बढ़ाने हेतु तहे दिल से आभार.
      सादर

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