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बुधवार, अगस्त 12

बादल का एक टुकड़ा



मरुस्थल की अँजुरी में बैठी थी 
गुमान का ओढ़े ग़ुबार नागफनी। 
संघर्ष से जूझती स्वयंसिद्धा बन पनपी 
जिजीविषा का उदाहरण थी नागफनी।

बादल का एक टुकड़ा रोज़ साँझ ढले 
मरुस्थल को लाँघता हुआ गुज़रता।
कभी कपास से नहाया हुआ-सा 
कभी स्याह काला कर्तव्यबोध दर्शाता।

 चाँदनी-सी शीतल छाँव नसीब में देख 
 एक पल के ठहराव से इतराई नागफनी। 
 बादल की प्रीत में खोई-खोई बौराई 
 बरसा न गरजा जीवन पर रोई नागफनी। 

नुकीले काँटे हेय दृष्टि का भार बढ़ा 
सजी न सँवरी न आँगन का मान मिला। 
लू के थपेड़े पीठ पर ठंडी रेत का हाथ 
जग मरुस्थल आँधी का संसार मिला।

बादल का मुसाफ़िर होना गुज़र जाना 
समय के काग़ज़ पर लिखा यथार्थ था।
मरुस्थल के आरोह-अवरोह से जूझना 
नागफनी की रग-रग में बसा परमार्थ था।

©अनीता सैनी 'दीप्ति'

36 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार(14-08-2020) को "ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो" (चर्चा अंक-3793) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.

    "मीना भारद्वाज"

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    1. सादर आभार आदरणीय दी चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  2. बहुत अच्छी रचना... बधाई


    कृपया मेरे ब्लॉग साहित्य वर्षा पर भी पधारें 🙏
    लिंक दे रही हूं -
    https://sahityavarsha.blogspot.com/2020/08/blog-post_12.html?m=1

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    1. सादर आभार आदरणीय वर्षा दी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया मिली अत्यंत हर्ष हुआ।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  3. उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  4. ये सच है नागफनी मरुस्थल की होती है ... पर शायद वहां ही हरियाली की जरूरत भी सब से अधिक होती है ... कांटे ही सही ... एक भाव तो देती है ठंडक का ...
    सुन्दर रचना ... लाजवाब भावपूर्ण ... श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई ....

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    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती सारगर्भित समीक्षा हेतु।
      सादर

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  5. शानदार रचना । मेरे ब्लॉग पर आप का स्वागत है ।

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    1. सादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  6. उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

      हटाएं
  7. वाह लाजवाब।
    बहुत गहन भावों को दर्शाता शानदार लेखन ।
    स्वयं सिद्धा होना भी कितना बड़ा अभिशाप है।

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    1. तहे दिल से आभार आदरणीय दी सृजन सफल हुआ आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया से।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  8. कृपया इस लिंक पर अवश्य पधारे इसमें आप भी शामिल हैं -
    https://ghazalyatra.blogspot.com/2020/08/blog-post_14.html?m=0

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    1. आपके स्नेह से अभिभूत हूँ दी। स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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    2. हिन्दी साहित्य की सेवा इसी तरह करती रहें... सदैव ख़ुश रहें।
      स्नेह एवं आशीर्वाद ❤💐❤

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  9. उत्तर
    1. सादर आभार सखी मनोबल बढ़ाने हेतु।
      सादर

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  10. उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
      सादर

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  11. बादल का मुसाफ़िर होना गुज़र जाना
    समय के काग़ज़ पर लिखा यथार्थ था।
    मरुस्थल के आरोह-अवरोह से जूझना
    नागफनी की रग-रग में बसा परमार्थ था।
    बहुत खूब,गहन चिंतन करती लाज़बाब रचना अनीता

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  12. कृपया मेरे ब्लॉग Varsha Singh की इस लिंक का भी अवलोकन करने का कष्ट करें, मेरे इस लेख में आपके गीत का भी उल्लेख है।

    http://varshasingh1.blogspot.com/2020/07/blog-post_28.html?m=1

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    1. वाह!सराहना से परे दी।
      निशब्द हूँ आपके स्नेह से आज सहेजा नहीं जा रहा दिल में।
      गागर में सागर ...
      आदरणीय रविंद्र जी सर की सोमवार चर्चामंच की प्रस्तुति में यह प्रस्तुति चाहूँगी।
      तहे दिल से आभार दी आपके शब्द हृदय में उतर गए।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।

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  13. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 17 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार आदरणीय यशोदा दी पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  14. बेहद खूबसूरत रचना सखी।नागफनी का बादल से प्यार और इंतजार।लाजवाब।

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    1. सादर आभार सुजाता बहन मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  15. वाह!प्रिय अनीता ,अद्भुत !!
    नागफनी के नसीब में मरुस्थल का आरोह -अवरोह ही है...।

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    1. तहे दिल से आभार प्रिय दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु ।
      सादर

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  16. उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

      हटाएं
  17. बहुत सुन्दर सामयिक रचना

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  18. सादर आभार आदरणीय दी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु।
    सादर

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