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शुक्रवार, अक्तूबर 16

क्षितिज पार दूर देखती साँझ


 
फिर पथ पीड़ा क्यों हाँक रहा?
ले गोद चला भाव सुकुमार
एक-एक रोटी को पेट पीटता  
करुण कथा में सिमटा संसार।

मौन करुणा कहे बरसे बरखा 
शीतलता को धरणी तरसती।
मनुज सरलता डायन बन लौटी 
चपला बुद्धि काया को छलती।

ठठेरा बन बैठा है यहाँ कौन ?
गढ़ता शोषण साम्राज्य मौन।
मिटाना था अँधेरा आँगन का   
विपुल वेदना अधिकारी कौन?

हृदय मधु भरा मानस मन में 
ज्यों पराग सुमन पर ठहरा।
ज्ञात है बदली में अंजन वास 
 निधियाँ का चितवन पर पहरा।

उन्मादी मन उलझा उत्पात में 
क्षितिज पार दूर  देखती साँझ। 
निर्निमेष पलक हैं भावशून्य 
अंतस में रह-रह उभरे झाँझ।

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

20 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 16 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार आदरणीय दी संध्या दैनिक में स्थान देने हेतु।

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  2. बहुत सुन्दर और मार्मिक प्रस्तुति।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर मनोबल बढ़ाने हेतु।

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    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाने हेतु।

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  4. ठठेरा बन बैठा है यहाँ कौन ?
    गढ़ता शोषण साम्राज्य मौन।
    मिटाना था अँधेरा आँगन का
    विपुल वेदना अधिकारी कौन?
    साम्राज्य के इसी मौन का फायदा उठाते हैं ये ठठेरे
    बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक सृजन
    लाजवाब...।

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    1. सादर आभार आदरणीय दी मनोबल बढ़ाने हेतु।

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  5. उन्मादी मन उलझा उत्पात में
    क्षितिज पार दूर देखती साँझ।
    निर्निमेष पलक हैं भावशून्य
    अंतस में रह-रह उभरे झाँझ।
    हृदयस्पर्शी भाव लिए अत्यंत सुन्दर रचना । हर बंद हृदयस्पर्शी शब्द चित्र उकेरता हुआ ।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मीना दी मनोबल बढ़ाने हेतु।

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  6. उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया अनुज मनोबल बढ़ाने हेतु।

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  7. उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाने हेतु।

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  8. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (18-10-2020) को     "शारदेय नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ"  (चर्चा अंक-3858)     पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   शारदेय नवरात्र की 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु।

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