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सोमवार, अक्तूबर 26

परिवर्तन सब निगल चुका था


हमने शब्दों का व्यापार करना चाहा 
परंतु वे शब्द भी खोखले प्रभावरहित थे 
हमारा व्यवहार संवेदनारहित 
भाव दिशा भूल ज़माने से भटक चुके थे 
शुष्क हृदय पर दरारें पड़ चुकी थी 
अब रिश्ते रिश्ते नहीं पहचान दर्शाने हेतु 
मात्र एक प्रतीक बन चुके थे 
जीवन ज़रुरतों का दास बन चुका था 
घायल सांसों से आँखें चुराता इंसान 
इंसानीयत का ओहदा छोड़ चुका था 
अबोध बालकों की घूरतीं आँखें 
बालकनी से झाँकते कोरे जीवंत चित्र थे 
माँ की ममता पिता का दुलार 
अपनेपन का सुगढ़  एहसास  
सप्ताह में एक बार मिलने वाली 
मिठाई बन चुका था 
मास्क में मुँह छिपाना 
हाथों पर एल्कोहल मलना 
परिवर्तन पहनना अनिवार्य बन चुका था 
अकेलापन शालीनता की उपाधि
मानवीय मूल्य मात्र बखान 
फ़्रेम में ढलती कहानी बन चुके थे 
देखते ही देखते बदलाव सब निगल चुका था।

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

41 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 27 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार आदरणीय सर सांध्य दैनिक पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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    1. सादर आभार अनुज मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 28 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. दिल से आभार आदरणीय पम्मी दी पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (28-10-2020) को   "स्वच्छ रहे आँगन-गलियारा"    (चर्चा अंक- 3868)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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    1. सहृदय आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  5. अकेलापन शालीनता की उपाधि बन चुका था
    मानवीय मूल्य मात्र कोरे बखान
    फ़्रेम में ढलती कहानी बन चुके
    देखते ही देखते परिवर्तन सब निगल चुका था।

    वाह!!

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    1. आभारी हूँ सखी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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    1. आभारी हूँ आदरणीय दी आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।आशीर्वाद बनाए रखे।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर मनोबल बढ़ाने हेतु।

      हटाएं
  8. शुष्क हृदय पर दरारें पड़ चुकी थी
    अब रिश्ते रिश्ते नहीं पहचान दर्शाने हेतु
    मात्र एक प्रतीक बन चुके थे - - जीवन की वास्तविकता दर्शाती हुई रचना, विभिन्न परतों को उजागर करती हुई अविरल बहती जाती है, प्रभावशाली लेखनी - - नमन सह।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  9. आदरणीया मैम ,
    बहुत ही सुंदर सटीक और करुण रचना जो आज के युग कि भावनात्मक शुष्कता को दर्शा रही है।
    सच है , विकास और परिवर्तन के दौड़ में मानवीय भावनाएं और संबन्धों का बहुत पतन हुआ है।
    सुंदर रचनाओं के लिए हृदय से आभार व सादर नमन।

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    1. आभारी हूँ प्रिय अनंता अत्यंत हर्ष हूँ सुंदर सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
      सस्नेह आभार

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  10. आदरणीया अनिता सैनी जी, नमस्ते👏! आपकी सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए साधुवाद! आपकी ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं:
    अकेलापन शालीनता की उपाधि
    मानवीय मूल्य मात्र बखान
    फ़्रेम में ढलती कहानी बन चुके थे
    देखते ही देखते बदलाव सब निगल चुका था।
    --ब्रजेन्द्रनाथ

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    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर आपकी प्रतिक्रिया मेरा संबल है।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  11. अब रिश्ते रिश्ते नहीं पहचान दर्शाने हेतु
    मात्र एक प्रतीक बन चुके थे
    जीवन ज़रुरतों का दास बन चुका था
    घायल सांसों से आँखें चुराता इंसान
    इंसानीयत का ओहदा छोड़ चुका था
    जब परिवर्तन की बयार बयार नहीं तूफान बन जाये तब विनाश तो होना ही है सच में ऐसा परिवर्तन कि इंसान इंसानियत ही खो बैठा तो विनाश भी सुनिश्चित ही था...
    बहुत सुन्दर समसामयिक हालातों पर विचारणीय भावाभिव्यक्ति।
    वाह!!!!

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    1. दिल से आभार आदरणीय सुधा दी मनोबल बढ़ाती सुंदर सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु।सृजन सार्थक हुआ।
      सादर

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  12. सही कहा ... बदलाव ऐसा ही होता है और इसे स्वीकार करना अनिवार्य होता है ।

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    1. दिल से आभार सखी मनोबल बढ़ाने हेतु।
      सादर

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  13. प्रिय अनीता जी,
    बहुत अच्छी रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें।
    स्नेह सहित,
    -डॉ. वर्षा सिंह

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    1. दिल से आभार आदरणीय वर्षा दी आपकी अनमोल प्रतिक्रिया मिली अत्यंत हर्ष हुआ। आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  14. अबोध बालकों की घूरतीं आँखें
    बालकनी से झाँकते कोरे जीवंत चित्र थे
    माँ की ममता पिता का दुलार
    अपनेपन का सुगढ़ एहसास
    सप्ताह में एक बार मिलने वाली
    मिठाई बन चुका था... बहुत सुंदर और सटीक सृजन सखी।

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    1. दिल से आभार सखी मनोबल बढ़ाने हेतु।
      सादर

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  15. वाह.. अद्भुत लेखन आदरणीय।

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  16. बहुत सुन्दर शब्द शिल्प में गुंथी भावपूर्ण रचना ।

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  17. बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति, अनिता दी।

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  18. परिवर्तन बहुत कुछ देता है तो बहुत कुछ छीन भी लेता, गंभीर विषय उठाया मैम आपने

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया अनुज मनोबल बढ़ाने हेतु।

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