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शनिवार, जून 19

भँवरजाल


रीत-प्रीत रा उलझ्या धागा

लिपट्या मन के चारु मेर

लाज-शर्म पीढ़े पर बैठी 

झाँझर-झूमर बाँधे बेर ।।


जेठ दुपहरी ओढ़ आँधी 

बदरी भरके लाव नीर 

 माया नगरी राचे भूरो

छाजा नीचे लिखे पीर 

आतो-जातो शूल बिंधतो 

मरु तपे विधना रो फेर।।


टिब्बे ओट में सूरज छिपियो

साँझ करती पाटा राज

ढलती छाया धरा गोद में

अंबर लाली ढोंव काज

पोखर ऊपर नन्हा चुज्जा

पाखी झूम लगाव टेर।।


एक डोर बंध्यो है जिवड़ो

सांस सींचता दिवस ढलो

पूर्णिमा रा पहर पावणा

शरद चाँदनी साथ भलो

तारा रांची रात सोवणी

उगे सूर उजालो लेर।।


@अनिता सैनी 'दीप्ति' 

46 टिप्‍पणियां:

  1. राजस्थान की आंचलिकता के रंग और महक में पगी
    अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति । आपकी श्रम साधना अद्भुत है । हिन्दी के समान राजस्थानी लिपि में भी कमाल का लिखती हैं ।

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    1. आभारी हूँ दी आदरणीय दी ।
      ग्रामीण परिवेश से जुड़ी होने से कभी कभी हृदय में भाव मुखर हो जाते है।सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया मिली दिल से आभार।
      सादर

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  2. बहुत सुंदर कविता।

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-06-2021) को 'भाव पाखी'(चर्चा अंक- 4101) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।

    अनिता सुधीर

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    1. आभारी हूँ आदरणीय अनिता जी मंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति और वो भी राजस्थानी अंदाज में। बहुत खूब।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय ज्योति बहन भाव समझने का प्रयास किया आपने।
      सादर

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  5. वाह,बहुत सुंदर लिखा है आपने।🌻🙏

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  6. वाह! मारवाड़ की सौंधी खुशबू बिखेरता सुंदर नवगीत।
    अपने अँचल की भाषा का अहसास सदा ही सुरंगा होता है उस पर इतनी भावपूर्ण रचना ।
    साधुवाद ।
    मने तो बोत चोखी लागी मदुरी मदुरी।
    मिश्री की डली

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    1. सही कहा दी अपने आँचल की भाषा में पगे भाव घणा चोखा लगये। आपकी प्रतिक्रिया से मन प्रफुलित हो गए।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  7. वाह बहुत सुन्दर भाव हैं नव गीत के !

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  8. राजस्थान की आंचलिक भाषा में मनमोहक सृजन प्रिय अनीता जी,

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    1. आभारी हूँ आदरणीय कामिनी दी जी मनोबल बढ़ाने हेतु।
      सादर

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  9. वाह बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌👌

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  10. एक डोर बंध्यो है जिवड़ो
    सांस सींचता दिवस ढलो
    पूर्णिमा रा पहर पावणा
    शरद चाँदनी साथ भलो....
    बहुत ही सुंदर रचना। मन को भा गई। ।।।।

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    1. आभारी हूँ सर आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया प्राप्त हुई।
      सादर

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  11. जेठ दुपहरी ओढ़ आँधी 
    बदरी भरके लाव नीर 
     माया नगरी राचे भूरो
    छाजा नीचे लिखे पीर 
    आतो-जातो शूल बिंधतो 
    मरु तपे विधना रो फेर।।...काश कुछ बदल पाता। बहुत सुंदर ख़ुश रहो।

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    1. मन भारी न करें कभी कभी हृदय से भाव मुखर हो जाते है धूप छाव आदत में शुमार हो चुकी है और फिर धीरे-धीरे जीवन का हिस्सा बन जाते है।
      दिल से आभार।
      सादर

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  12. बहुत सुंदर रचना, अनिता।

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  13. बहुत सुन्दर रचना. एक दो शब्द समझ नहीं आया. पर भाव समझ गई. बधाई.

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    1. आभारी हूँ आदरणीय जेन्नी दी जी नवगीत मारवाड़ी बोली में पर भी आपने भाव समझने का प्रयास किया।प्रतिक्रिया मिली अत्यंत हर्ष हुआ।
      सादर

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  14. इस कविता की महक को एक राजस्थानी मिट्टी से जुड़ा व्यक्ति कितने निकट से अनुभव कर सकता है, यह मैं जानता हूँ। अभिनंदन अनीता जी।

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    उत्तर
    1. हमेशा ही आपकी प्रतिक्रिया मुझे संबल प्रदान करती है।यों ही मार्गदर्शन करते रहे।
      आभारी हूँ आदरणीय सर।
      सादर

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  15. बहुत सुन्दर भावपूर्ण राजस्थानी गीत अनीता !
    मेरी सलाह है कि ऐसे गीतों के नीचे उनका हिंदी भावार्थ भी दे दिया करो. डॉक्टर जेन्नी शबनम की तरह मुझे भी कुछ शब्द समझ में नहीं आए.

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    उत्तर
    1. भविष्य में ध्यान रखूँगी सर।
      आपकी प्रतिक्रिया मिली अत्यंत हर्ष हुआ।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  16. उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  17. बहुत सुंदर भाव अनिता जी।सुंदर सृजन।

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    उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीय जिज्ञासा दी जी।
      सादर

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  18. वाह अप्रतिम सृजन

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    1. आभारी हूँ आदरणीय सदा दी जी।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  19. राजस्थानि भाषा मुझे नहीं आती परन्तु कविता का मर्म अच्छी तरह समझ गया. सुंदर प्रस्तुति .

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    1. आभारी हूँ आदरणीय राकेश 'राही'भाई जी आपकी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई अत्यंत हर्ष हुआ।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  20. आंचलिक भाषा की गंध भी बाखूबी छुपी है इस भावनाप्रधान रचना में ...
    बहुत खूब ...

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    उत्तर
    1. दिल से आभार आदरणीय नासवा जी सर आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया मिली।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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