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सोमवार, अगस्त 2

अबोलापन

 अबोलापन

बाँधता  है 

संवाद से पहले

होनेवाली 

भावनाओं की

उथल-पुथल को

साँसों की डोरी से ।


मौन भी काढ़ता कसीदा 

आदतन विराजित

एक कोने में 

संवादहीनता ओढ़े

दर्शाता हृदय की गूढ़ता को ।


भाव-भंगिमा का

बिखराव 

एहसास के सेतु पर अकुलाहट 

समयाभाव

अपेक्षा का ज्वार  

गहरे

बहुत गहरे में

है डूबोता।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

40 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 03 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आभारी हूँ आदरणीय यशोदा दी पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु।
      सादर

      हटाएं
  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (3-8-21) को "अहा ये जिंदगी" '(चर्चा अंक- 4145) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ कामिनी दी चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

      हटाएं
  3. गूढ़ सृजन।
    मौन सदा सामने वाले को अपने रहस्य से भयभीत करता है।
    और प्रतिवादी के अंदर दोषी होने के भाव उत्पन्न करता है ।

    अभिनव, अप्रतिम , प्रबुद्ध मंथन ।

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    उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ आदरणीय कुसुम दी जी।
      ब्लॉग की दुनिया में मैं आपकी सबसे बड़ी प्रशंसक हूँ आपकी लेखनी को नमन।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  4. बेहद खूबसूरत अल्फाज़ों में मन के चिंतन को प्रकट करती भावासिक्त अभिव्यक्ति । अत्यन्त सुन्दर सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीय मीना दी सृजन सार्थक हुआ आपकी प्रतिक्रिया मिली।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  5. बहुत ही खूबसूरत कविता है...। गहनतम शब्दों और भावों से सजी कविता...।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय संदीप जी सर।
      सादर

      हटाएं
  6. अति सूक्ष्म विश्लेषण से उत्पन्न
    गूढ़ रचना।
    ---
    पलटकर बोलने से
    आहत होते अंहकार की
    प्रतिध्वनि के आर्तनाद को
    रिसने से रोकने के लिए
    सीलबंद किया गया
    अबोलापन।
    ----

    सस्नेह।

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    उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीय श्वेता दी सृजन सार्थक हुआ आपकी प्रतिक्रिया से।
      स्नेह बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  7. वाह, खूबसूरत रचना, खूबसूरत शब्द व खूबसूरत शब्द-विन्यास!

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    उत्तर
    1. आभारी हूँ आपकी प्रतिक्रिया से संबल मिला।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  8. मौन को परिभाषित करती बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति। आपको हार्दिक शुभकामनाएं अनीता जी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीय जिज्ञासा दी आपकी प्रतिक्रिया अनमोल है।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  9. अबोलापन
    रहता मन उद्विग्न
    चलता मौन संवाद
    अपने आप से
    और मिलता
    मौका दूसरे को
    खुद को साध लेने का
    कि
    जब भी सामना होगा
    अनगिनत प्रश्नों का
    कैसे किया जाएगा
    बचाव खुद का ।
    इस लिए मेरी सलाह कि मौका ही न दो संभालने का और न रहो अबोले ।😄😄😄

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    उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीय संगीता दी जी।
      इस अपार स्नेह हेतु दिल से आभार।
      आपका हुकुम सर आँखों पर 😊
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  10. मौन भी काढ़ता कसीदा

    आदतन विराजित

    एक कोने में

    संवादहीनता ओढ़े

    दर्शाता हृदय की गूढ़ता को । कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाती है आपकी रचना - - हमेशा की तरह असाधारण लेखनी मंत्रमुग्ध कर जाती है - - नमन सह अनीता दी।

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    उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीय शांतनु जी सर अनमोल प्रतिक्रिया हेतु।आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर नमस्कार

      हटाएं
  11. बेहद खूबसूरत सृजन

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  12. बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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  13. अबोलेपन तथा मौन की भी भाषा होती है अनीता जी; बस उसे जो सुन सके, समझ सके, ऐसा हृदय होना चाहिए। बहुत अच्छी कविता है आपकी।

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    उत्तर
    1. आभारी हूँ सर आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
      सादर नमस्कार।

      हटाएं
  14. बहुत ही गहरी डुबकी है ये .... सारी बातें कही भी नहीं जा सकती ।

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    उत्तर
    1. दिल से आभार आदरणीय अमृता दी जी संबल मिला आपकी प्रतिक्रिया से।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  15. बेहद गहनतम भाव ....

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    उत्तर
    1. दिल से आभार प्रिय सदा दी जी।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर नमस्कार

      हटाएं
  16. मौन भी काढ़ता कसीदा

    आदतन विराजित

    एक कोने में

    संवादहीनता ओढ़े

    दर्शाता हृदय की गूढ़ता को ।


    बहुत गहन भाव उकेरे हैं !! बहुत बढ़िया रचना !!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीय अनुपमा दी जी सृजन सार्थक हुआ।
      सादर

      हटाएं
  17. अबोलापन
    बाँधता है
    संवाद से पहले
    होनेवाली
    भावनाओं की
    उथल-पुथल को
    साँसों की डोरी से ।
    जो तोलता है अपने भावों को बाहर फेंकने से पहले हिय के तराजू में...
    वाह!!!!
    गहन अभिव्यक्ति

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    1. आभारी हूँ आदरणीय सुधा दी जी।
      सादर आभार

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  18. सुंदर साहित्यिक भाषा है। बढिया रचना।

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  19. बेहतरीन और बेहद खूबसूरत

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