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बुधवार, मई 25

तुम मत बोलना !


ये जो सन्नाटा पसरा पड़ा है 

 इसकी परतें तुम मत खोलना।

विरह की रड़क थामे है मौन

 टूटना-रुठना तुम मत घोलना।

 मत बोलना! तुम मत बोलना!!


अव्यक्त नयन सोते में डूबा

जिह्वा का हठयोग रहा।

व्यक्त आजीवन एकदम उत्सर्ग

विधना का सुयोग रहा।

बैठ  छाँव में निरख ढोलना

 मत बोलना! तुम मत बोलना!!


व्यूह में उलझे अभिमन्यु के 

 अनकहे भाव  सुलगते हैं।

न कहने की पीड़ा को पीते

 कितने ही प्रश्न झुलसते हैं।

 जीवन तराजू में न तौलना 

 मत बोलना! तुम मत बोलना!!


कोरे पन्नों पर बिखेर बेल-बूँटे 

शीतल माटी गाँव गढ़े।

क़लम उकेरे तत्समता भावों की  

उजड़े चित्त की ठाँव पढ़े।

उस पथ पर पथिक तुन दोलना

मत बोलना! तुम मत बोलना!!


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

28 टिप्‍पणियां:

  1. व्यूह में उलझे अभिमन्यु के

    अनकहे भाव सुलगते हैं।

    न कहने की पीड़ा को पीते

    कितने ही प्रश्न झुलसते हैं।

    जीवन तराजू में न तौलना

    मत बोलना! तुम मत बोलना!!

    विरह और ऐसी परिस्थिति दोनों ही मौन करने के लिए मजबूर होती प्रतीत हो रही हैं । भावपूर्ण रचना ।।

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    उत्तर
    1. जी हृदय से आभार आदरणीय संगीता दी जी 🙏
      सादर प्रणाम

      हटाएं
  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26-05-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4442 में दिया जाएगा| चर्चा मंच पर आपकी उपस्थित चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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    उत्तर
    1. हृदय से आभार आदरणीय सर मंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

      हटाएं
  3. अव्यक्त नयन सोते में डूबा
    जिह्वा का हठयोग रहा।
    व्यक्त आजीवन एकदम उत्सर्ग
    विधना का सुयोग रहा।
    बैठ छाँव में निरख ढोलना
    मत बोलना! तुम मत बोलना!!
    वाह ! बहुत सुन्दर !!
    उपालम्भ भाव से सजी कृति हृदयस्पर्शी लगी ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय मीना दी जी दिल से अनेकानेक आभार आपकी प्रतिक्रिया संबल है।
      सादर

      हटाएं
  4. व्यूह में उलझे अभिमन्यु के
    अनकहे भाव सुलगते हैं।
    न कहने की पीड़ा को पीते
    कितने ही प्रश्न झुलसते हैं।
    जीवन तराजू में न तौलना
    मत बोलना! तुम मत बोलना!!

    बहुत सुंदर...

    जवाब देंहटाएं

  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ मई २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    उत्तर
    1. श्वेता दी मंच पर स्थान देने हेतु हृदय से आभार।
      सस्नेह

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  6. तुम मत बोलना तो कलम कह रही है पर अंतस तो चाहता है कि उद्वेलित भंवर में मे फंसे मन की गांठें बस तुम ही खोलना।
    कुछ तो बोलना ढोलना , कुछ तो बोलना।
    चुप नहीं ओढ़ना ढोलना मन के भेद खोलना।
    कुछ तो मेरे मन की बोलना।
    शानदार प्रस्तुति अप्रतिम सुंदर।

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    उत्तर
    1. आदरणीय कुसुम दी जी आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा स्नेह आशीर्वाद बनाए रखें।
      सस्नेह आभार

      हटाएं
  7. अव्यक्त नयन सोते में डूबा

    जिह्वा का हठयोग रहा।

    व्यक्त आजीवन एकदम उत्सर्ग

    विधना का सुयोग रहा।

    बैठ छाँव में निरख ढोलना

    मत बोलना! तुम मत बोलना!!

    मत बोलना बस यही तो दबाव रहा है युगों से और अब जीह्वा का हठधर्म न तोड़ना
    बहुत सुन्दर सृजन।

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    उत्तर
    1. हृदय से आभार आदरणीय सुधा दी आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
      सादर स्नेह

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  8. बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति

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    उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीय पम्मी जी 🙏
      सादर स्नेह

      हटाएं
  9. ना बोलते बोलते बहुत कुछ बोल गई ये कलम, बेहतरीन सृजन अनीता

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  10. पर आप यूँ ही सुन्दरता से बोलते (सृजन) रहिए। टिप्पणी जरा देख लेंगी। नहीं दिख रहा है।

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    उत्तर
    1. आपका स्नेह अनमोल है मैं बोलती (सृजन )रहूंगी आप सुनते रहना। सफ़र कट जायेगा।
      बहुत सारा स्नेह

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  11. मौन गहरे पैठ गया है तभी सुन्दर भावभिव्यक्ति की रचना हुई, बहुत सुंदर!!

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  12. बेहद खूबसूरती से लिखा गया है

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  13. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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