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रविवार, अक्तूबर 9

मैं जब तुम बनकर जीती हूँ


मैं जब तुम बनकर जीती हूँ / अनीता सैनी 'दीप्ति'
...

मैं जब, तुम बनकर जीती हूँ

तब मैं जी रही होती हूँ आकाश

उन्मुक्त भाव

धूप के टुकड़ों को सींचते 

भोर के क़दमों की आहट 

क्षितिज-सा समर्पण 

तब मैं लिख रही होती हूँ पहाड़

दरारों से झाँकती सदियाँ 

पाषाण के फूटते बोल 

जीवन काढ़े का अनुभव 

परिवर्तन पी रही होती हूँ

तब मैं, मैं कहाँ रहती हूँ

बिखर रही होती हूँ काग़ज़ पर

भावों की परछाई शब्दों में ढलती 

उस वक़्त कविता-कहानियों का 

अनकहा ज़िक्र जी रही होती हूँ।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

22 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुन्दर।
    "मैं जब तुम बनकर जीती हूँ"...... इस पंक्ति को बहुत सुन्दर ढंग से परिभाषित किया है।

    जवाब देंहटाएं
  3. मैं जब तुम बनकर जीती हूँ

    तब मैं लिख रही होती हूँ पहाड़

    वाह बहुत ही सुंदर,
    क्या खूब लिखा है आपने प्यार समर्पण को नयी तरह से परिभाषा दे दी आपकी रचना ने।
    आभार

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  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11-10-22} को "डाकिया डाक लाया"(चर्चा अंक-4578) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

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  5. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना सखी

    जवाब देंहटाएं
  6. जब मैं तुम बनकर जीती हूँ

    तब मैं, मैं कहाँ रहती हूँ

    तब मैं जी रही होती हूँ आकाश

    हृदय पर उगते उन्मुक्त भाव

    वाह!!!

    धूप के टुकड़े से सींच रही होती हूँ
    बिखर रही होती हूँ काग़ज़ पर

    तुम बनकर जीना भी पड़ता है एकाकी में ...तुम सा सम्भालने के लिए ...
    अनकहे से भाव उकेर दिये आपने
    बहुत लाजवाब।

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  7. बहुत बढ़िया और सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति। आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

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  8. बहुत सुन्दर अनीता !
    प्रेम की पराकाष्ठा तो पूर्ण समर्पण में ही होती है और इस पूर्ण समर्पण की स्थिति में अहम् अर्थात् - 'मैं' का अस्तित्व नहीं रहता. कोई राधा स्वयं मोहन बन जाती है, कोई मीरा स्वयं कान्हा बन जाती है.

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    उत्तर
    1. अनेकानेक आभार आदरणीय सर आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया संबल है मेरा। आशीर्वाद बनाए रखें।
      सादर

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  9. बहुत सुन्दर भाव सजाये हैं...बधाई

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  10. बेनामी20/10/22, 9:43 am

    दीपावली की शुभकामनाएं। सुन्दर प्रस्तुति व अनुपम रचना।

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