Powered By Blogger

बुधवार, अक्टूबर 22

जड़ में जीवन है


जड़ में जीवन है
(विरह के पार — आत्मा का शोर)
✍️ अनीता सैनी
---
तुम मन की माया के
सारे खेल खेलना,
जब भी मन करे —
तुम प्रेम के दरिया में उतरना,
बार-बार उतरना।

विरह को पढ़ना 
बार-बार पढ़ना,
जैसे पढ़ी हो तुमने
अष्टावक्र की गीता —
जो शब्दों में नहीं,
मौन में खुलती है।

और जब मौन भी
अपने अर्थ खोने लगे,
देह की अग्नि में
अपने ही विचारों का कोयला डालना —
और थोड़ा और धधकना,
जैसे हवन-कुंड में
शाम की आँच सुलगती हो।

और फिर भी न माने मन —
तुम मन के रिक्त पात्र में
थोड़ा और प्रेम भरकर
कविता अर्पित करना।

आत्मा के कुएँ से
एक घूँट जल खींचना,
श्वास की नमी से
थके प्राणों को सींचना —
जैसे पनघट पर
घट के संग गुनगुनाती हो चाँदनी।

तुम विरह को लिखना —
बार-बार लिखना,
जी-भर लिखना,
जैसे किसी के आँसुओं ने ही
तुम्हारे लिए गढ़ा हो
कागज़।

और जब अक्षर भी
कंपकंपाने लगें —
भाल पर शीतल चाँदनी का तिलक करना,

और पृथ्वी की धड़कन पर
ध्यान धरना।

तुम विरह को देखना —
बार-बार, पलट-पलट कर देखना,
जैसे कोई संत
अपने ही ध्यान का साक्षी हो।

पर तुम विरह में उतरना मत —
उसकी जड़ों में जीवन बहता है,
जो तुम्हें
मरने नहीं देगा।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें