Powered By Blogger

मंगलवार, अगस्त 21

मैं


मैं  का नाता
मनुज से गहरा
छूट रहा जग
मैं  में  ठहरा ।

मैं का दरिया
मैं का पहरा
ढूब रहा जग
 मैं का अँधेरा।

छिपा रहे हैं
अपना  चेहरा
दिखा रहे 
 प्रभाव  हैं  गहरा।

मैं  की  रस्सी
मैं  का जाल
मानवता का
हुआ यह हाल।

#अनीता सैनी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें