कल्पित कविता कल्पनालोक ने 
हृदय सरगम के निर्मल तारों से , 
अंतरात्मा ने किया भावों को व्यक्त ,
कल्पित कविता कल्पनालोक ने ,
कहीं अनुराग कहीं विरक्त |
कहीं  बिछोह  में  भटकी दर-दर ,
कहीं   अपनों   ने   दुत्कारा ,
नीर  नयन  का  सुख  गया ,
जब उर  ने  उर  को  दुलारा |
करुण  चित्त  का  कल्लोल ,
कल्पना  ने  कल्पा  संयोग ,
शब्द  साँसों  में  सिहर  उठे ,
 जब अंतरमन  से  उलझा वियोग  |
कभी  झाँकती  खिड़की से,
कभी निश्छल प्रेम ने पुकारा,
 कह  अल्हड़  हृदय  का उद्गार, 
जब  जग  ने  दिया  सहारा |
अकेलेपन की अलख से आहत,
ओढ़ा  आवरण  न्यारा ,
 पहनी   पगड़ी   खुद्दारी   की,
  जब कवि ने कविता  को  संवारा |
 - अनीता सैनी
 
 
 
 
          
      
 
  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर
हटाएंसादर
वाह बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार आदरणीया दी जी
हटाएंसादर
बहुत बहुत सुंदर प्रस्तुति जब कवि ने कविता को संवारा ।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार प्रिय कुसुम दी जी
हटाएंसादर
वाह! अलंकृत रचना का सौंदर्यबोध मनमोहक है. सुन्दर रचना में शब्द-विन्यास रोचकता लिये हुए है.
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सुन्दर समीक्षा और उत्साहवर्धन हेतु |
हटाएंप्रणाम
सादर
अकेलेपन की अलख से आहत,
जवाब देंहटाएंओढ़ा आवरण न्यारा ,
पहनी पगड़ी खुद्दारी की,
जब कवि ने कविता को संवारा | बेहतरीन रचना
सस्नेह आभार प्रिय सखी
हटाएंसादर स्नेह
वाह!!सखी ,बेहतरीन रचना!
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार प्रिय सखी
हटाएंसादर स्नेह
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (12-07-2019) को "भँवरों को मकरन्द" (चर्चा अंक- 3394) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चा मंच पर मुझे स्थान देने हेतु
हटाएंप्रणाम
सादर
वाह लाज़बाब रचना अनिता
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय उर्मिला दी जी
हटाएंसादर स्नेह
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सहृदय आभार प्रिय श्वेता दी जी पाँच लिंकों के आंनद पर स्थान देने हेतु
हटाएंसादर स्नेह
सुंदर शब्द-लालित्य।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय उत्साहवर्धन हेतु
हटाएंप्रणाम
सादर
कहीं बिछोह में भटकी दर-दर ,
जवाब देंहटाएंकहीं अपनों ने दुत्कारा ,
नीर नयन का सुख गया ,
जब उर ने उर को दुलारा |
वाह!!!
लाजवाब रचना।
तहे दिल से आभार आदरणीया दी जी
हटाएंप्रणाम
सादर
उम्दा लेखन
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीया दी जी
हटाएंसादर स्नेह
पगड़ी खुद्दारी की
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
सहृदय आभार आदरणीय
हटाएंप्रणाम
सादर