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रविवार, अक्टूबर 13

उस मोड़ पर



 उस मोड़ पर
 जहाँ 
 टूटने लगता है
 बदन 
छूटने लगता है 
हाथ  
देह और दुनिया से
उस वक़्त 
उन कुछ ही लम्हों में 
उमड़ पड़ता है 
सैलाब 
यादों का 
 उस बवंडर में उड़ते  
नज़र आते हैं 
अनुभव
 बटोही की तरह राह नापता 
वक़्त 
रेत-सी फिसलती 
साँसें 
विचलित हो डोलती हैं 
तभी 
अतीत की 
 उजली धूप में   
उसी पल हृदय थामना 
चाहता है  
हाथ 
भविष्य का 
 अँकुरित हुए उस 
परिणाम के 
साथ
 र्तमान करता है 
छीना-झपटी 
एक पल के अपने अस्तित्त्व के 
साथ |

© अनीता सैनी 

16 टिप्‍पणियां:

  1. अतीत की
    उजली धूप में
    उसी पल हृदय थामना
    चाहता है
    हाथ
    भविष्य का
    अँकुरित हुए उस
    परिणाम के
    साथ....,
    बेहतरीन और लाजवाब भावाभिव्यक्ति अनीता जी ।

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    उत्तर
    1. सादर नमन आदरणीय मीना दी जी. आभारी हूँ आपके अपार स्नेह और सानिध्य की.

      हटाएं
  2. अंत और अनंत की, भूत,वर्तमान और भविष्य के अटल और निरंतर सत्य की हृदयस्पर्शी व्याख्या की है आपने अनिता जी ! बस लाजवाब!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय नीरज जी. बहुत बहुत शुक्रिया आपका रचना का सार्थक मर्म समीक्षा में उकेरने और रचना को समझने में और सहूलियत प्रदान करने हेतु.

      हटाएं
  3. जी नमस्ते,


    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (14-10-2019) को "बुरी नज़र वाले" (चर्चा अंक- 3488) पर भी होगी।


    ---

    रवीन्द्र सिंह यादव

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय रवीन्दर जी मेरी रचना को चर्चामंच पर स्थान देने हेतु.
      सादर

      हटाएं
  4. हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति बहन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार प्रिय कामिनी दी.सुन्दर समीक्षा और अपार स्नेह हेतु.
      सादर

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. वो शब्दों में कलेजा परोसते रहे
      बर्खुरदार शब्दों में उलझ गये
      दुआ सलाम में गुज़र गये पहर ज़िंदगी के
      अब वो पहर पहलू में बैठने से मुकर गये... वक़्त मिले तो ग़ौर फ़रमाइएगा ज़नाब इस दिपावली घर की चौखट लगियेगा.
      सादर प्रणाम

      हटाएं
  6. बहुत गहन होती है आपकी रचनाएं, अद्भुत तरह से भावों को लिखना और दिल तक उतरना, सचमुच अप्रतिम अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत सारा आभार आदरणीया कुसुम दी जी।
      आपकी टिप्पणी मेरी रचना का मान बढ़ाती है। आपसे मिला प्रोत्साहन मुझे नई ऊर्जा से भरता है।
      सादर आभार आपका दी।

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  7. छूटने लगता है
    हाथ
    देह और दुनिया से
    उस वक़्त
    उन कुछ ही लम्हों में
    उमड़ पड़ता है
    सैलाब
    यादों का
    उस बवंडर में उड़ते
    नज़र आते हैं बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति सखी

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